
नई दिल्ली, 09 दिसंबर (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण का आधार धर्म नहीं हो सकता है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये टिप्पणी पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद बने ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार ने ये आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया है, बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर दिया है। सिब्बल ने कहा कि 2010 के बाद बने ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश से हजारों छात्रों के अधिकारों पर असर पड़ा है। इससे यूनिवर्सिटी में दाखिला और रोजगार चाहने वाले नौजवान प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। उसके बाद कोर्ट ने 7 जनवरी 2025 को विस्तृत सुनवाई करने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त को हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी किया था। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि ओबीसी के वर्गीकरण का काम राज्य सरकार का है न कि आयोग का। उन्होंने कहा था कि हाई कोर्ट का आदेश असंवैधानिक है। हाई कोर्ट सरकार चलाना चाहती है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल में आरक्षण से जुड़े सभी काम ठप्प हो गए हैं।कलकत्ता हाई कोर्ट ने 22 मई 2010 के बाद बने 37 समुदायों के ओबीसी सर्टिफिकेट को निरस्त कर दिया था। हाई कोर्ट के इस आदेश को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
(Udaipur Kiran) /संजय———–
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
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