
– वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य के मनोनयन के प्रावधान पर रोक लगा सकता है सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 16 अप्रैल (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार से वक्फ कानून मामले पर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जारी हिंसा पर चिंता जताई है। लगभग डेढ़ घंटे तक चली बहस के बाद कोर्ट ने आज कोई फैसला नहीं दिया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच कल यानी 17 अप्रैल को दोपहर 02 बजे से फिर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान संकेत दिया कि ‘वक्फ बाय यूजर’ की व्यवस्था को हटाने और वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों को नामित करने की व्यवस्था पर अंतरिम रोक लगा सकता है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि संसद से पारित कानून पर बिना विस्तार की सुनवाई के कोर्ट रोक नहीं लगा सकती है, लेकिन वक्फ बाय यूजर के प्रावधान को देखते हुए कोर्ट ऐसा कर सकती है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जारी हिंसा पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि जब मामला कोर्ट में लंबित है, इस तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए। सुनवाई के दौरान वक्फ बाय यूजर के प्रावधान को हटाने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि अंग्रेजी शासन काल से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं थी। बहुत सारी मस्जिदें 13वीं, 14वीं और 15वीं शताब्दी की बनी हैं। आप चाहते हैं कि वो आपको सेल डीड दिखाएं, कहां से दिखाएंगे।
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि यह कानून धर्म की स्वतंत्रता के अनुच्छेद 25 और धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता के अनुच्छेद 26 के खिलाफ है। सिब्बल ने कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को समाप्त कर दिया गया है, यह इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है, इसे राम जन्मभूमि फैसले में मान्यता दी गई है। सिब्बल ने कहा कि समस्या यह है कि वे कहेंगे कि यदि वक्फ 3000 साल पहले बनाया गया है तो वह डीड मांगेगा।
वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम धर्म की अंदरूनी व्यवस्था के खिलाफ है, संवैधानिक हमले का आधार यह है कि वक्फ इस्लाम के लिए आवश्यक और अभिन्न अंग है। धर्म, विशेष रूप से दान, इस्लाम का आवश्यक और अभिन्न अंग है, पहले सीईओ मुस्लिम होना चाहिए था, अब ऐसा नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ संसोधन बिल पर विमर्श के लिए जेपीसी का गठन किया गया था। इस बाबत 38 बैठकें की गईं, 92 लाख ज्ञापनों की जांच की। बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हुआ, इसके बाद बिल पर राष्ट्रपति की मुहर लगी।
मेहता ने कहा कि 2025 अधिनियम से पहले पंजीकृत मौजूदा वक्फ, वक्फ संपत्ति के रूप में बने रहेंगे, लेकिन अगर कोई कहता है, हम पंजीकृत नहीं है, केवल विवादों में रहने वाली संपत्तियों को छोड़कर सब बने रहेंगे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यह वक्फ संपत्ति क्यों नहीं रहेगी। सिविल कोर्ट को यह तय करने दें। चीफ जस्टिस ने कहा कि विधायिका अदालत के किसी निर्णय या डिक्री को अमान्य घोषित नहीं कर सकता, आप कानून के आधार को हटा सकते हैं, लेकिन आप किसी निर्णय को बाध्यकारी नहीं घोषित कर सकते हैं।
(Udaipur Kiran) /संजय———–
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
