जयपुर, 17 दिसंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के पुरातत्व विभाग की ओर से हाथी सवारी की दरें प्रार्थी सोसायटी को सुने बिना ही 2500 रुपए से घटाकर 1500 रुपए करने को गलत माना है। अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि जब विभाग ने हाथी सवारी की दरों में बढोतरी के दौरान प्रार्थी सोसायटी को उनका पक्ष रखने और चर्चा के लिए बुलाया था तो दरें कम करते समय उनका पक्ष क्यों नहीं जाना गया। इसके साथ ही अदालत ने पुरातत्व विभाग को निर्देश दिया है कि वह प्रार्थी सोसायटी को सुनकर नए सिरे से हाथी सवारी की दरों को तय करे। जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल ने यह आदेश हाथी गांव विकास समिति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में पुरातत्व विभाग के गत 8 नवंबर के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हाथी सवारी की दर 2500 रुपए से घटाकर 1500 रुपए की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें सुने बिना पुरातत्व विभाग हाथी सवारी की दर को कम नहीं कर सकता। पूर्व में जब हाथी सवारी की दरें बढाई गई थी तक याचिकाकर्ता समिति सहित अन्य संबंधित लोगों का पक्ष सुना गया था। राज्य सरकार की कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है। इसके जवाब में राज्य सरकार की ओर से एएजी सुरेन्द्र सिंह नरूका ने कहा कि नियम 1968 के उप नियम 4 के तहत राज्य सरकार को दरें कम या ज्यादा करने का अधिकार है। इसलिए ही राज्य सरकार ने दरें कम की हैं। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने राज्य सरकार को कहा है कि वह याचिकाकर्ता सोसायटी को सुनकर नए सिरे से हाथी सवारी की दर तय करे।
—————
(Udaipur Kiran)