जलवायु परिवर्तन के लिये वैश्विक प्रयास – भारत की प्रतिबद्धता में राज्यों का योगदान विषय पर हुई संगोष्ठी
भोपाल, 28 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये जमीनी स्तर पर व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पंचामृत की जो बात कही गई है, उसका पालन सभी को करना चाहिए। भारत हमेशा प्रॉब्लम सॉल्वर के रूप में सामने आया है। विषय-विशेषज्ञों ने इस तरह के विचार सोमवार को भोपाल में “जलवायु परिवर्तन के लिये वैश्विक प्रयास – भारत की प्रतिबद्धता में राज्यों का योगदान” पर हुई संगोष्ठी में “इंडियाज पर्सपेक्टिव ऑन क्लाइमेट चेंज और पॉजिटिव एफर्टस् फॉर क्लाइमेट प्रोटेक्शन एट नेशनल एण्ड इंटरनेशनल लेवल्स पर हुए पैनल डिस्कशन” में व्यक्त किये।
क्लाइमेट जस्टिस जरूरी
सेवानिवृत्त आईएएस रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कार्बन बाजारों में प्रवेश के लिये ठोस फ्रेमवर्क बनाने की जरूरत है। इससे प्राकृतिक खेती और सतत् वन विकास एवं पर्यावरणीय प्रयासों को वित्तीय सहायता मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि यह कदम न केवल पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करेगा बल्कि भारत को वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका में स्थापित करेगा। श्री प्रसाद कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव गरीबों पर पड़ता है, अत: क्लाइमेट जस्टिस जरूरी है।
बनायें नेचर वॉलेंटियर्स
वरिष्ठ पत्रकार की अभिलाषा खांडेकर ने कहा कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिये नेचर वॉलेंटियर्स बनाने की जरूरत है। पानी का सदुपयोग करें। उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज को रोकने के व्यवहार में परिवर्तन जरूरी है।
एक भी बूंद पानी का नहीं छोड़ता
आईआईएफएम के प्रोफेसर डॉ. योगेश दुबे ने कहा कि क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये भारत सरकार ने बड़ी तेजी से कदम आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं ग्लास में एक भी बूंद पानी की नहीं छोड़ता। श्री दुबे ने कहा कि स्वाइल हेल्थ कार्ड बनाने का कार्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण है। वनीकरण और हाइड्रोजन फ्यूल के उपयोग को बढ़ावा देना क्लाइमेट चेंज को रोकने में मददगार साबित होंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार विश्वमोहन ने कहा कि सभी को मिलकर समग्र प्रयास करने की जरूरत है। वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और प्राचीन पर्यावरणीय संरचनाओं पर गहराई से अध्ययन करने की योजना बनाई गई है। इसमें बारिश को प्रभावित करने वाले वायुकणों का अध्ययन, जलवाष्प का विश्लेषण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।
संचालक अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान राजेश गुप्ता ने कहा कि यहां जो चर्चाएं हुई हैं, वह दूर तलक जायेंगी। यह एक शुरूआत है, हम जरूर कामयाब होंगे। नर्मदा समग्र के चीफ एक्जीक्यूटिव कार्तिक सप्रे ने कहा कि “मैं से हम और हम से सब” के सूत्र पर काम कर रहे हैं। नदी केवल एक बहता पानी नहीं है बल्कि यह एक सजीव है। पैरवी के डायरेक्टर अजय झा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर पहली बार मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय विषय पर सार्थक चर्चा की गई। इस दौरान अन्य वक्ताओं ने भी महत्वपूर्ण सुझाव दिये।
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(Udaipur Kiran) / नेहा पांडे