सोनीपत, 29 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । नेपाल केसरी, राष्ट्र संत और मानव मिलन के संस्थापक डॉ.श्री
मणिभद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि धर्म सभा में प्रवचन सुनना मात्र एक धार्मिक कृत्य
नहीं है, बल्कि यह हमारे आत्मिक और मानसिक विकास का भी एक महत्वपूर्ण साधन है। धर्म
सभा में केवल शारीरिक उपस्थिति पर्याप्त नहीं होती; हमारे मन और आत्मा का भी वहाँ होना
आवश्यक है। उनके अनुसार, प्रवचन हमारे ज्ञान और आत्मा की शुद्धि की ओर मार्ग प्रशस्त
करते हैं, जिससे श्रद्धा भाव में वृद्धि होती है। मुनि जी शहर की गुड़ मंडी स्थित श्री
एसएस जैन सभा जैन स्थानक में चातुर्मास के दौरान उपस्थित भक्तजनों को संबोधित कर रहे
थे।
मुनि जी ने श्रद्धा को जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण
बताया। उन्होंने कहा कि श्रद्धा का अर्थ है किसी के प्रति गहरी आस्था और विश्वास। जब
हम धर्म के प्रति श्रद्धा रखते हैं, तो हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। यह
श्रद्धा हमें प्रेरणा देती है, कठिन परिस्थितियों में शक्ति प्रदान करती है और हमारे
जीवन को एक उद्देश्य से जोड़ती है। मुनि जी ने समझाया कि प्रवचन हमारे जीवन के उद्देश्य, नैतिकता
और धार्मिक मूल्यों के प्रति हमें जागरूक करते हैं। यह ज्ञान हमें आत्मसात करके अपने
जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म केवल एक आस्था नहीं, बल्कि जीवन जीने
का तरीका है।
मुनि जी के अनुसार, धर्म सभा में उपस्थित होना एक अवसर है,
जो हमें ज्ञान, प्रेरणा और आत्मिक शांति प्रदान करता है। यदि हम केवल शारीरिक रूप से
उपस्थित रहेंगे और मन कहीं और होगा, तो धर्म के प्रति श्रद्धा का भाव विकसित नहीं होगा।
धर्म सभा का उद्देश्य हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है, और इसके लिए मन और आत्मा
का एकजुट होना आवश्यक है।
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(Udaipur Kiran) परवाना