
-दूसरों को धोखा देने का मतलब खुद
को धोखा देना
सोनीपत, 28 जुलाई (Udaipur Kiran) । नेपाल केसरी डॉ. मणिभद्र जी महाराज ने कहा कि पुरुषार्थ और
पराक्रम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन जो इंसान दूसरों को धोखा देने की
सोचता है और इसमें खुश होता है, वह वास्तव में स्वयं को ही धोखा दे रहा है। उन्होंने
बताया कि अब तक जितना हमने स्वयं को धोखा दिया है, उतना किसी और को नहीं दिया।
रविवार को डॉ. मणिभद्र मुनि जी महाराज सेक्टर 15 स्थित जैन
स्थानक में श्रावकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वयं को धोखा देकर हम
आत्मा को धोखा देते हैं और आत्मा को धोखा देने का मतलब है परमात्मा को धोखा देना। जब
सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तब इंसान धर्म की ओर जाता है। सुखी जीवन जीने के लिए
हमें अपनी सोच को सकारात्मक और अच्छी रखना चाहिए। यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो हमारा
जीवन सरल है। अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने और चालाकी करने का परिणाम हमें ही भुगतना
पड़ता है। हमें हर स्थिति में वास्तविकता को समझना और स्वीकार करना चाहिए।
इस अवसर पर पूज्य श्री पुनीत मुनि जी महाराज ने कहा कि इंसान
के मन से बड़ा कोई बंधन और मोक्ष नहीं है। यदि हमारा मन शुभ है तो हमें शुभ फल प्राप्त
होते हैं, और यदि मन अशुभ है तो अशुभ फल मिलते हैं। जिसने अपने मन पर विजय प्राप्त
कर ली, उसने पूरे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। जैसे घोड़े को लगाम लगाकर वश में किया
जाता है, वैसे ही प्रभु स्मरण, स्वाध्याय और सत्संग द्वारा हमारे मन को वश में किया
जा सकता है। मन ही देवता है, मन ही ईश्वर है, मन से बड़ा कोई नहीं है। उन्होंने कहा
कि धर्म-अधर्म और पाप-पुण्य सब हमारे मन में हैं। जैसा हम विचार करते हैं, वैसा ही
हमारा व्यक्तित्व होता है।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) परवाना / SANJEEV SHARMA
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