सिरसा, 21 मई (Udaipur Kiran) । चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय सिरसा के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने विश्वविद्यालय के आईटी डाटा एंड कंप्यूटर सेंटर भवन का नाम माता अमृता देवी बिश्नोई भवन रखने की घोषणा की है। यह निर्णय विश्वविद्यालय के अधोसंरचनात्मक विकास के साथ-साथ सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को संजोने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल के रूप में देखा जा रहा है।
विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता राकेश गोदारा ने बताया बुधवार को बताया कि इससे पूर्व 26 अप्रैल को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने विश्वविद्यालय के टीचिंग ब्लॉक-5 का नाम माता अहिल्याबाई होल्कर भवन के रूप में उद्घाटन कर समाज को एक सशक्त संदेश दिया था। उसी क्रम में विश्वविद्यालय की हाल ही में आयोजित कोर्ट की बैठक के निर्णयों के अनुसार कंस्ट्रक्शन ब्रांच ने अन्य भवनों के नामकरण हेतु विस्तृत प्रस्ताव विश्वविद्यालय के उच्चाधिकारियों को प्रेषित किया था।
प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान करते हुए कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि माता अमृता देवी बिश्नोई पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक चेतना की प्रतीक रही हैं। उन्होंने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे। गुरु जम्भेश्वर महाराज ने आज से 540 वर्ष पहले प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण की शिक्षाओं देकर समाज के अंदर एक नई अलख जगाई थी। ऐसे महान व्यक्तित्वों के नाम पर भवनों का नामकरण कर हम न केवल उनके योगदान को स्मरण में लाते हैं, बल्कि विद्यार्थियों को उनके आदर्शों से जुडऩे की प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर को केवल शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र न बनाकर उसे सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का संवाहक भी बनाया जा रहा है, जिससे विद्यार्थी समग्र रूप से विकसित हो सकें।
कुलपति ने बताया कि भारत के इतिहास में राजस्थान के जोधपुर जिले के गांव खेजड़ली में घटित एक ऐसी घटना दर्ज है, जिसने न केवल बलिदान की परिभाषा को नया आयाम दिया, बल्कि संगठित पर्यावरण संरक्षण आंदोलन की नींव भी रखी।
यह घटना सन 1730 में (लगभग 300 वर्ष पूर्व) जोधपुर के महाराज अभय सिंह के शासनकाल की है। महाराज ने अपने नए महल के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी एकत्र करने का आदेश दिया। इस आदेश के पालन हेतु हकीम गिरधर दास भंडारी सैन्य टुकड़ी के साथ खेजड़ली गांव पहुंचा और वहां की खेजड़ी वृक्षों की कटाई का प्रयास करने लगा। खेजड़ी का वृक्ष बिश्नोई समुदाय के लिए अत्यंत पूज्य और संरक्षण योग्य माना जाता है, क्योंकि यह पर्यावरण संतुलन और मरुस्थलीय पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्थानीय बिश्नोई जनों ने अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए इस कार्य का विरोध किया। जब सैनिकों ने उनकी बात नहीं मानी और जबरन वृक्षों की कटाई शुरू की, तब एक साहसी बिश्नोई महिला, माता अमृता देवी, आगे आईं। उन्होंने खेजड़ी वृक्ष से लिपटकर यह ऐतिहासिक आह्वान किया की यदि सिर कट जाए पर वृक्ष बच जाए, तो यह सौदा सस्ता है। कुलपति ने कहा की ऐसी महान विभूति के नाम इस भवन का नाम रखने से विधार्थियों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागृति उत्पन्न होगी।
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(Udaipur Kiran) / Dinesh Chand Sharma
