हरिद्वार, 9 सितंबर (Udaipur Kiran) । आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने अखाड़ों के बीच चल रही खींचतान पर एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने प्रयागराज कुम्भ मेला 2025 को भव्य और दिव्य बनाने के लिए अखाड़ा परिषद को अपने आचार-विचार सुधारने की सलाह दी है।
श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहा कि नकली और कुछ बहिष्कृत साधुओं को शामिल करके परिषद बनाना उचित नहीं है। अखाड़ा परिषद तभी वैध हो सकती है जब संन्यासी और वैष्णव दोनों पक्षों में अध्यक्ष और मंत्री अलग-अलग हों। उनका कहना है कि परिषद में दोनों प्रमुख पदों पर एक ही परंपरा के साधु नहीं होने चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यदि अध्यक्ष संन्यासी हो तो मंत्री बैरागी, उदासी या निर्मल सम्प्रदाय से होना चाहिए।
श्रीमहंत गोपाल गिरि ने कहा कि पहले निरंजनी अखाड़े के श्रीमंहत शंकर भारती 16 वर्ष तक अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे। इसके बाद सन् 2004 से 17 तक वैष्णव अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञान दास और जूना अखाड़ा ने अध्यक्ष पद संभाला। वर्ष 20 17 से फिर निरंजनी और जूना अखाड़े के साधु अध्यक्ष और महामंत्री बन बैठे।
उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अखाड़ा परिषद किसी की निजी संपत्ति है, जो कुछ अखाड़े इस पर कब्जा जमाने के लिए पदों से चिपके रहना चाहते हैं। श्रीमहंत गोपाल गिरि ने पूछा कि अखाड़ा परिषद में सर्वप्रथम स्थापित आवाहन, अटल, अग्नि और आनन्द अखाड़ाें को परिषद में उपेक्षित क्यों किया जा रहा है। इन अखाड़ाें काे केवल वोट देने और समर्थन के लिए ही इस्तेमाल करना अनुचित है।
उन्होंने आगे कहा कि अखाड़ा परिषद में ऐसे लाेगाें काे पद मिलना चाहिए, जो लोभ, कपट और छल से दूर हों और समद्ष्टा हाें, तभी अखाड़ा परिषद का महत्व स्थापित हो सकेगा।
(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला