West Bengal

शिक्षामित्रों को भी 60 वर्ष तक नौकरी का अधिकार, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज की

कलकत्ता हाई कोर्ट

कोलकाता, 04 अप्रैल (Udaipur Kiran) । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि शिक्षामित्र भी राज्य के अन्य स्कूल शिक्षकों की तरह 60 वर्ष की आयु तक नौकरी कर सकते हैं। इस निर्णय से राज्य सरकार को झटका लगा है क्योंकि उसकी अपील को डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा और न्यायमूर्ति अजयकुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच ने सुनाया। बेंच ने स्पष्ट किया कि सिंगल बेंच द्वारा पहले दिए गए आदेश को ही मान्यता दी जाएगी और उसे बरकरार रखा गया है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि शिक्षामित्रों को सेवा में बहाल किया जाए और उनका लंबित वेतन राज्य सरकार उन्हें दे।

राज्य सरकार ने 2004 में सर्वशिक्षा मिशन के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति की थी। उनका मुख्य कार्य था—पिछड़े इलाकों के स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से स्कूल में लाना और उनकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी निभाना। इसके लिए उन्हें प्रति माह ₹2400 वेतन दिया जाता था।

2013 में राज्य सरकार ने शिक्षामित्रों की पदविन्यास में बदलाव करते हुए उन्हें ‘स्वेच्छासेवक’ घोषित कर दिया और 2014 में उनका भत्ता भी बंद कर दिया। साथ ही, उन्हें 60 वर्ष की आयु से पहले ही सेवानिवृत्त करने की बात कही गई। इस निर्णय के खिलाफ शिक्षामित्रों के एक समूह ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

26 अप्रैल 2023 को न्यायमूर्ति रविंद्रनाथ सामंत की सिंगल बेंच ने राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील की थी, जिसे शुक्रवार को खारिज कर दिया गया।

इस फैसले से राज्य के हजारों शिक्षामित्रों को राहत मिली है और अब वे 60 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रह सकेंगे।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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शिक्षामित्रों को भी 60 वर्ष तक नौकरी का अधिकार, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज की

कलकत्ता हाई कोर्ट

कोलकाता, 04 अप्रैल (Udaipur Kiran) । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि शिक्षामित्र भी राज्य के अन्य स्कूल शिक्षकों की तरह 60 वर्ष की आयु तक नौकरी कर सकते हैं। इस निर्णय से राज्य सरकार को झटका लगा है क्योंकि उसकी अपील को डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा और न्यायमूर्ति अजयकुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच ने सुनाया। बेंच ने स्पष्ट किया कि सिंगल बेंच द्वारा पहले दिए गए आदेश को ही मान्यता दी जाएगी और उसे बरकरार रखा गया है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि शिक्षामित्रों को सेवा में बहाल किया जाए और उनका लंबित वेतन राज्य सरकार उन्हें दे।

राज्य सरकार ने 2004 में सर्वशिक्षा मिशन के तहत शिक्षामित्रों की नियुक्ति की थी। उनका मुख्य कार्य था—पिछड़े इलाकों के स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से स्कूल में लाना और उनकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी निभाना। इसके लिए उन्हें प्रति माह ₹2400 वेतन दिया जाता था।

2013 में राज्य सरकार ने शिक्षामित्रों की पदविन्यास में बदलाव करते हुए उन्हें ‘स्वेच्छासेवक’ घोषित कर दिया और 2014 में उनका भत्ता भी बंद कर दिया। साथ ही, उन्हें 60 वर्ष की आयु से पहले ही सेवानिवृत्त करने की बात कही गई। इस निर्णय के खिलाफ शिक्षामित्रों के एक समूह ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

26 अप्रैल 2023 को न्यायमूर्ति रविंद्रनाथ सामंत की सिंगल बेंच ने राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील की थी, जिसे शुक्रवार को खारिज कर दिया गया।

इस फैसले से राज्य के हजारों शिक्षामित्रों को राहत मिली है और अब वे 60 वर्ष की आयु तक सेवा में बने रह सकेंगे।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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