-कराहल में श्रीमद् भागवत का कथा का तीसरा दिन
श्योपुर, 16 जुलाई (Udaipur Kiran) । भक्ति के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है। इसलिए बच्चों को बचपन में ही भक्ति की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है उससे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। मंगलवार को यह बात कथा व्यास पं. रोहित कृष्ण शास्त्री ने हनुमान कुटी करियादेह तिराहा पर पिपरौनिया परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में ध्रुव चरित्र प्रसंग का वर्णन करते हुए कही।
भागवत कथा में तीसरे दिन ध्रुव चरित्र, जड़ भरत प्रसंग, सती चरित्र, शिव-पार्वती विवाह, नरसिंह अवतार आदि प्रसंगों का वर्णन किया गया। पं. रोहित कृष्ण शास्त्री ने सती चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्मदाता पिता का ही घर क्यों न हो। भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा।
उन्होंने ध्रुव प्रसंग सुनाते हुए बताया कि सौतेली मां सुरुचि द्वारा अपमानित होने पर भी धु्रव की मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य, संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। मां सुनीति की प्रेरणा से भक्त ध्रुव द्वारा कठिन तपस्या कर भगवान श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने का प्रसंग सुनाते हुए पं. रोहित कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भक्ति के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है। बच्चों को बचपन में ही भगवत भक्ति की प्रेरणा देनी चाहिए। प्रहलाद प्रसंग का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने कहा कि प्रहलाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंबे में भी हैं और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से नृसिंह रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का वध कर प्रहलाद के प्राणों की रक्षा की। यहां श्रीमद् भागवत कथा प्रतिदिन दोपहर 12 से शाम 05 बजे तक आयेाजित की जा रही है।
(Udaipur Kiran) / शरद शर्मा तोमर