गाजियाबाद, 22 दिसंबर (Udaipur Kiran) । जिले के कुशलिया गांव निवासी किसान शकील बेग ने अपनी बेटी को शादी में ऐसा नायाब तोहफा दिया है जिससे न केवल उसकी बेटी की शादी खास बन गयी, बल्कि पूरे इलाके में यह चर्चा का विषय बनी हुई है। शकील बेग ने अपनी बेटी जोया को अपनी बेटी को महंगी कर ना देकर मेसी ट्रैक्टर दिया है।
दहेज दानव है, दहेज कुरीति है, ऐसे शब्द हमें किताबों में और अखबारों में भले ही पढ़ने को मिल जाए लेकिन हकीकत यह है कि समाज में दहेज नामक कुरीति कम होने के बजाय लगातार बढ़ रही है। लोग अपनी बेटियों को दहेज के नाम पर बड़े-बड़े गिफ्ट दे रहे हैं। जिसमे एक नहीं दो-दो महंगी कार भी शामिल है। लेकिन शकील बेग ने लीक से हटकर अपनी बेटी को ट्रैक्टर दिया है। शकील का कहना है कि ट्रैक्टर से उसकी बेटी के घर की आमदनी बढ़ेगी जबकि यदि वह कार देता तो उसका खर्च बढ़ता। भारतीय किसान यूनियन से जुड़े शकील बाग कहते हैं कि इसकी प्रेरणा उन्हें भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत से मिली है।
दरअसल -मसूरी डासना के पास एक गाँव कुशलिया है। कुशलिया गांव में रहने वाले किसान शकील बेग ने गांव के ही शाकिब के साथ बेटी की शादी की है। शाकिब का परिवार भी खेत किसान है। धूमधाम से हुई इस शादी को शकील बेग की नई सोच ने खास बना दिया। उन्होंने बेटी को कोई महंगी कार देने के बजाय ट्रैक्टर तोहफे में दिया है। शकील बेग का कहना है कि कार किसान का खर्च बढ़ाती है और ट्रैक्टर उसकी आमदनी। बेटी के परिवार की खुशहाली के लिए ट्रैक्टर भेंट किया है ताकि परिवार को खेत का काम करने सहुलियत हो सके।
शकील बेग का कहना है कि हमारा परिवार भारतीय किसान यूनियन से जुड़ा हुआ है। टिकैत साहब हमेशा कहते हैं कि ट्रैक्टर किसान का टैंकर होता है, किसान का जहाज होता है। टिकैत साहब फिजूल खर्ची के भी खिलाफ रहते हैं, उन्होंने कभी किसानों से नहीं कहा कि कार अच्छी होनी चाहिए, हमेशा बोलते हैं- अपना ट्रैक्टर अच्छा रखो।
शकील का कहना है कि तोहफे में कार देने पर बेटी के परिवार पर खर्च का बोझ बढ़ता, ऐसा तोहफा देकर वे बेटी के ससुराल वालों पर फिजूल का बोझ नहीं डालना चाहते थे। ट्रैक्टर उनके खेतीबाड़ी के काम के बोझ को हल्का करेगा। इसके जरिए उन्होंने किसानों को अच्छा संदेश देने का प्रयास किया है।
दूल्हे शाकिब के पिता शाहिद प्रधान भी तोहफे में ट्रैक्टर पाकर खुश हैं। उनका कहना है कि किसी किसान के लिए इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है।
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(Udaipur Kiran) / फरमान अली