Uttrakhand

राजस्थान, पं बंगाल व पूर्वोत्तर राज्यों में बहेगी सनातन संस्कृति व सद्ज्ञान की धारा : शैलदीदी

ज्योति कलश यात्रा निकालते हुए

हरिद्वार, 9 सितंबर (Udaipur Kiran) । शांतिकुंज में चल रहे ज्योति कलश यात्रा सम्मेलन के अंतिम दिन गायत्री परिवार की अधिष्ठात्री शैलदीदी ने राजस्थान, पं बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, असम सहित नौ राज्यों के लिए नौ ज्योति कलश का विशिष्ट कर्मकाण्ड के साथ पूजन किया। इस अवसर पर शैलदीदी ने कहा कि ज्योति कलश यात्रा एक अभूतपूर्व अवसर है। इस अभियान में ऋषिसत्ताओं, हमारे आराध्य युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा का सूक्ष्म संरक्षण हैं। यह यात्रा अपने उद्देश्यों को अवश्य पूरा करेगी। केवल हमें अपने दायित्वों का कुलशतापूर्वक निर्वहन करना है।

सम्मेलन के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए शांतिकुंज व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरी ने कहा कि युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है कि शरीर परिवर्तन के बाद साकार से निराकार होने के अंतर्गत मैं अखण्ड दीपक में समा जाऊंगा, तब जिस किसी को कुछ कहना हो, तो वे अखण्ड दीपक के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं, उनको समाधान अवश्य मिलेगा।

श्री गिरी ने कहा कि उनके महाप्रयाण वर्ष 1990 से पहले और अब तक जो परिजन साथ रहे हैं, उन सबके अनुभव इस बात की पुष्टि करता है। व्यवस्थापक श्री गिरी ने ज्योति कलश यात्रा की रूपरेखा एवं आवश्यक सावधानियों पर भी विस्तृत जानकारी दी।

इससे पूर्व प्रतिभागियों को गायत्री विद्यापीठ की व्यवस्था मण्डल प्रमुख शेफाली पण्ड्या ने नारी जागरण के संबंध में विस्तृत जानकारी दी और कहा कि नारी शक्ति के बिना परिवार, समाज व राष्ट्र अधूरा है। इसलिए हम नारियों को सदैव भाइयों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलना है।

वहीं युगऋषिद्वय की पावन समाधि स्थल प्रखर प्रज्ञा-सजल श्रद्धा से ज्योति कलश जनजागरण रैली निकली। शांतिकुंज कार्यकर्त्ताओं के संग राजस्थान, पं बंगाल, असम, अरुणाचल सहित नौ राज्यों से आये सैकड़ों भाई-बहिनों ने पंक्तिबद्ध हो प्रेरणाप्रद नारे लगाते, जयघोष करते हुए शामिल हुए। रैली देवसंस्कृति विश्वविद्यालय स्थित प्रज्ञेश्वर महादेव की परिक्रमा की व विशेष प्रार्थना के बाद शांतिकुंज लौट आयी। युगऋषिद्वय की समाधि में ज्योति कलश यात्रा निमित्त अहिर्निश गुरु कार्य करने का अपना संकल्प दोहराया।

उल्लेखनीय है कि इस सत्र का शुभारंभ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व डॉ चिन्मय पण्ड्या के उद्बोधन से हुआ था। सम्मेलन में कुल 11 सत्र हुए, जिसमें शांतिकुंज के विषय विशेषज्ञों ने अपने-अपने विचार रखे।

(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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