Bihar

मुबारक और फ़ज़ीलत वाली रात मानी जाती है शब-ए-बरात : सैयद हसन

सैयद हसन

भागलपुर, 13 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । खानकाह पीर दमड़िया के 15वें सज्जादानशीन सैयद शाह फखरे आलम हसन ने गुरुवार को कहा कि शब-ए-बरात, जो कि शाबान महीने की पंद्रहवीं रात होती है, इस्लामी परंपराओं में एक बहुत ही मुबारक और फ़ज़ीलत वाली रात मानी जाती है। यह रात रहमत, मग़फिरत और बख़्शिश की रात कहलाती है, जिसमें अल्लाह तआला अपने बंदों पर ख़ास इनायत फरमाता है। हालाँकि क़ुरआन में शब-ए-बरात का तख़्सीस के साथ ज़िक्र नहीं आया, लेकिन कुछ मुफ़स्सिरीन ने सूरह अद-दुख़ान की शुरुआती आयतों को इस रात से जोड़ा है, जहाँ लैलतुम मुबारकह (बरकत वाली रात) का ज़िक्र मिलता है लेकिन ज़्यादातर मुफ़स्सिरीन की राय यही है कि वहाँ लैलतुल क़द्र की बात हो रही है। हदीसों में शब-ए-बरात की अज़मत को खुलकर बयान किया गया है।

अल्लाह तआला शाबान की पंद्रहवीं रात को अपनी मख़लूक़ की तरफ़ तवज्जो फरमाता है और सबकी मग़फिरत कर देता है, सिवाय मुशरिक और दिल में कीना रखने वाले के। जब शाबान की पंद्रहवीं रात आए तो उसमें इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो, क्योंकि अल्लाह तआला इस रात ग़ुरूब-ए-आफ़ताब के बाद आसमान-ए-दुनिया पर नुज़ूल फरमाता है और फ़रमाता है। ‘है कोई मग़फिरत मांगने वाला कि मैं उसे बख़्श दूँ? है कोई रिज़्क़ मांगने वाला कि मैं उसे अता कर दूँ?’ शब-ए-बरात तौबा और इस्तिग़फार की रात है। इस रात अल्लाह तआला बेशुमार गुनाहगारों को बख़्श देता है, सिवाय उन लोगों के जो शिर्क, कीना, रिश्तेदारों से कटाव, माँ-बाप की नाफ़रमानी या दूसरे बड़े गुनाहों में मुब्तिला हों और तौबा न करें। इस रात में ज्यादा से ज्यादा इबादत करना, नवाफ़िल पढ़ना, कुरआन की तिलावत, दुरूद शरीफ और तौबा-इस्तिग़फार में मस्रूफ़ रहना बड़ी बरकतों का बाइस है। शब-ए-बरात रहमत, मग़फिरत और बरकतों की रात है, जिसे हमें ग़फ़लत में नहीं गुज़ारना चाहिए। इस रात अल्लाह की तरफ़ रुजू करें, अपने गुनाहों की माफ़ी माँगें, नेक अमल करें और आगे की ज़िंदगी को अल्लाह की रज़ा के मुताबिक़ गुज़ारने का अज्म करें। यही इस रात की हक़ीक़ी फ़ज़ीलत से फ़ायदा उठाने का तरीक़ा है।

—————

(Udaipur Kiran) / बिजय शंकर

Most Popular

To Top