प्रयागराज, 19 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रपति से पुरस्कृत संगमनगरी के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार हिंदुस्तानी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष हरि मोहन मालवीय लखनऊ में अपने पुत्र गौरव मालवीय के पास विगत दिनों से रह रहे थे। वहां निमोनिया और छाती में संक्रमण के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 91 वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार हरि मोहन मालवीय का आज रात 2ः18 पर सीने में संक्रमण के कारण स्वर्गवास हो गया। उनका अंतिम संस्कार प्रयागराज में कालिंदी तट पर मीरापुर स्थित ककरहा घाट पर उनके पुत्र गौरव मालवीय ने किया। उनकी शव यात्रा में परिवार सहित बड़ी संख्या में साहित्य क्षेत्र से जुड़े एवं शहर के बुद्धिजीवी वर्ग के लोग तथा भाजपा कार्यकर्ता शामिल हुए।
हरि मोहन मालवीय भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी के अभिन्न मित्र एवं उनके चुनाव प्रभारी थे। वे प्रयागराज के सबसे पुराने स्वयंसेवकों में से थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता आजादी पूर्व ही ग्रहण कर ली थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऊपर लगने वाले प्रतिबंध के तहत 1949 में जो संघ सत्याग्रह हुआ था, उसमें तकरीबन 4 महीने नैनी केंद्रीय कारागार में बंद भी रहे। हरि मोहन मालवीय भारतीय जनता पार्टी की मासिक पत्रिका वर्तमान कमल ज्योति के कई वर्षों तक सम्पादक भी रह चुके हैं। वरिष्ठ समाजवादी नेता और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय सत्य प्रकाश मालवीय इनके पत्नी के भाई थे।प्रेम, स्नेह, संवेदनशीलता, भावुकता, परोपकार, विनम्रता जैसे मानवीय गुणों से आपूरित हरिमोहन मालवीय अपनी साहित्य तपस्या के कारण अति लोकप्रिय थे। साहित्य जगत में एक अलग पहचान थी। हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन में मालवीयजी ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। हिन्दी के संवर्धन में जुटी प्रयागराज की तीन प्रमुख संस्थाओं में इनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा। हिन्दी साहित्य सम्मेलन से वर्षों तक पत्रिका के सम्पादक के रूप में जुड़े रहे। हिन्दुस्तानी एकेडेमी में अनेक वर्षों तक सचिव एवं अध्यक्ष के रूप में सेवाएं देते रहे। अपने कार्यकाल में इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन एवं हिन्दुस्तानी एकेडेमी में अनेक महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किए, जो अविस्मरणीय हैं। विज्ञान के हिन्दी में लोकप्रियकरण में पिछले एक सौ दस वर्षों से निरन्तर सेवारत संस्था विज्ञान परिषद् में हिन्दी शब्दकोश निर्माण में मालवीयजी का विशेष अवदान रहा।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन“ को आत्मसात् कर विपरीत परिस्थितियों में भी पूरे उत्साह के साथ लगे रहते थे। आपके जीवन में कर्म की प्रधानता है। जैविक आयु लगभग 91 वर्ष की होने के कारण शारीरिक शिथिलता के बावजूद कभी हिन्दी साहित्य की चर्चा करते ही उनकी आँखों में अजीब-सी चमक आ जाती थी। नई स्फूर्ति, नए उत्साह के साथ उनकी सकारात्मक भावाभिव्यक्ति सराहनीय है। नव रचनाकारों का मालवीयजी सदैव उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करते रहते थे।
वे जिस संस्था में रहे, उसे जीवन्त रखा और उसकी समृद्धि करते रहे। उनका एक वाक्य स्थापित है-“संस्थाएं अनुदान से नहीं अनुराग से चलती हैं।“ श्री मालवीय अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को पूरा सम्मान देते रहे, साथ ही उनके सुख-दुःख की इन्हें हमेशा चिंंता रही। हिन्दी साहित्य के प्रति मालवीयजी की निष्ठा इनके लिखे सैकड़ों लेखों में परिलक्षित होती है। वृन्दावन शोध संस्थान में रहकर उन्हाेंने ब्रज साहित्य पर शोध किया। इस संस्थान द्वारा तानसेन की ’रागमाला’ कृति का सम्पादन कर प्रकाशित करने का कार्य किया। संत मलूकदास स्मारक समिति का गठन कर उसके माध्यम से संत मलूकदास के देवी धाम कड़ा स्थित ’मलूक आश्रम’ का पुनर्निमाण कराया। बालकृष्ण भट्ट की लोकोक्तियों का सम्पादन कर द्विभाषा संस्कृत लोकोक्ति कोष तैयार किया। वृन्दावन शोध संस्थान से प्राप्त रागमाला की पाण्डुलिपि के साथ जोधपुर स्टेट लाइब्रेरी से अपने व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा प्राप्त पाण्डुलिपि का पाठालोचन कर उन्होंने ’रागमाला’ का सम्पादित रूप प्रकाशित किया, जिसे हिन्दी साहित्य में आपकी विशेष उपलब्धि माना जाएगा। ’रागमाला’ में आपने प्रामाणिक रंगीन चित्र भी दिए हैं।
गुजरात से प्राप्त बालचन्द्र मुनि द्वारा जैन ग्रन्थ ’बालचन्द्र बत्तीसी’, विद्वान रचनाकार लोकमणि मिश्र रचित ’नौरस रंग’, बुन्देलखण्ड के महाराज पृथ्वीसिंह की कृति ’रतन हजारा’ एवं शुभकरण दास रचित बिहारी सतसई की ’अनवर चंद्रिका टीका’ के पाठालोचन एवं सम्पादन का महान कार्य किया। उपरोक्त कृतियां हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित हुईं। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में आपके योगदान हेतु आपको केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 2001 में ’गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान’ से राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत किया गया एवं 2018 में हिन्दी संस्थान द्वारा सर्वोच्च पुरस्कार ’साहित्य भूषण’ से भी सम्मानित किया।
हरिमोहन मालवीय को हिन्दी साहित्य का विश्वकोश या ’इनसाइक्लोपीडिया’ कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसी भी विषय पर आधा-एक घंटा अबाध व्याख्यान या लेखन इनके लिए सरल व सहज कार्य था। भारत की प्राचीनतम ’श्री पथरचट्टी रामलीला कमेटी’ द्वारा प्रकाशित स्मारिका के सम्पादन का अति सराहनीय कार्य आप इसके प्रारंभ से अब तक करते रहे। इसका हर अंक इनके अथक प्रयास से विशिष्ट एवं संग्रहणीय बन जाता था। हिन्दी साहित्य के एक सफल सम्पादक, पाठालोचक, साहित्यकार, वार्ताकार, कृत्तिकार, चित्रकार के योगदान को किसी एक पुस्तक में रेखांकित कर पाना एक दुरूह कार्य है।
(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र