मंडी, 16 सितंबर (Udaipur Kiran) । मंडी जनपद में सायर का त्योहार सोमवार को जिला भर में धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया गया। सायर का यह त्योहार किसानों की खुशहाली और समृद्धि के साथ.साथ अनाज पूजा से जुड़ा हुआ है। वहीं पर यह पर्व पशुधन की खुशहाली के साथ भी जुड़ा हुआ है। प्रदेश के कई हिस्सों में सायर पर्व को अलग.अलग ढंग से मनाया जाता है। उसी प्रकार मंडी जनपद में सायर का त्योहार अनाज पूजा से शुरू होता है। मंडयाली बोली में इस मौसम को भी सैर कहा जाता है। इस मौसम में पैदा होने वाले अनाज जैसे मक्की, धान, तिल, कोठा, गलगल आदि के पौधों को इक्टठा कर सायर तैयार कर पूजाघर में रखी जाती है। इसके बाद स्नानादि करके सायर की पूजा की जाती है।
सायर पूजा के लिए अखरोट का बहुत महत्व है। अखरोट के साथ द्रुब हाथ में लेकर अपनी की परिधि में घूमते हैं और फिर सायर के आगे मत्था टेकते हैं। सायर के दिन मंडी जनपद में बड़े-बुजूर्गों को द्रुब देने की परंपरा है। यह परंपरा बड़े बुजूर्गों का सम्मान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की भी है। इस अवसर पर सायर पूजन के बाद पांच या सात अखरोट दोनों हाथों में लेकर द्रुब खास की चार पांच डालियों के साथ बड़े बुजूर्गों के हाथ में पकड़ा कर उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। बड़े बुजूर्ग भी बड़े अदब के साथ अखरोट और द्रुब ग्रहण करते हैं और सचे मन से द्रुब की डालियां अपने कानों या टोपी से लगाकर आशीर्वाद देते हैं। भले ही आपस में कितने भी मतभेद रहे हों, लेकिन सायर के दिन बड़े -बुजूर्गों को द्रुब देकर उनका आशीर्वाद लेकर सारे गिले शिकवे दूर किये जाते हैं।
सायर पर्व खेती किसानी से जुड़ा पर्व है जो किसानों की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। अनाज पूजा से जुड़े इस पर्व के बाद फसलों और घास की कटाई का काम शुरू हो जाता है। सर्दियों के मौसम के लिए पशुओं के चारे के लिए घास की कटाई का काम भी शुरू हो जाता है। इसके बाद जमीन को अगली फसल के लिए तैयार करने के बाद गोबर की खाद डालने का काम भी किसानों को करना पड़ता है। इन सब कामों को निपटाने के लिए सामाजिक सामुहिकता की परंपरा ज्वारीए सरलोढी और मलोढी का सहारा लिया जाता है। जिसमें किसान परिवार के सदस्य दूसरों के खेतों और घासणियों में उनकी मदद करते हैं। इसके बदले दूसरे परिवार के सदस्य भी धान व घास की कटाई और गोबर की ढुलाई में मदद करते हैं।
श्रम के बदले श्रम का सहयोग की इस परंपरा के अलग-अलग नाम रखे गए हैं। जैसे खेतों में सामुहिक कार्य को ज्वारीए घास काटने के सामुहिक कार्य को सरलोढी और गोबर की खाद को खेतों में डालने के सामुहिक कार्य को मल़ोढी कहा जाता है। सायर के साजे को भादो का काला महीना समाप्त हो जाता है। भादो के काले महीने में जहां नई नवेली दुल्हनें एक माह के लिए मायके में आ जाती हैं। वे भी सायर के दिन वापस ससुराल लौट जाती है। भादों के काले महीने में ग्राम देवता अपने-अपने स्थान छोड़ कर डायनों से युद्ध लडऩे मंडी जिला के द्रंग क्षेत्र की घोघरधार में चले जाते हैं। वे भी सायर के दिन वापस देवालयों में लौट आते हैं और गूरों के मुंह से देव-डायनों के युद्ध का हाल सुनाते हैं।
मंडी जनपद के गोहर उपमंडल का खयोड़ नलवाड़ मेला पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए विख्यात है। किसान भी अपने खेतों में जुताई के लिए ख्योड़ नलवाड़ मेले से हृष्ट.पुष्ट बैलों को खरीद कर अपनी खेतीबाड़ी के कामों को अंजाम देना चाहते हैं। नौ दिन चलने वाले इस मेले में पशुधन की करोड़ों रूपए की खरीद फरोख्त होती है। इसके अलवा मंडी जिला के अन्य क्षेत्रों में भी स्थानीय स्तर पर देवताओं के प्रांगण में सायर मेलों का आयोजन होता है। जिसमें मंडी की मझवाड़ पंचायत के सायर में देव सायरी का मेला भी मशहूर है। सायर एक तरह से ग्रामीण संस्कृति और किसानों की खुशहाली से जुड़ा पर्व है…ग्रामीण जीवन में श्रम के महत्व को भी दर्शाता है। यहपर्व मंडी जनपद के हर गांव में धूमधाम के साथ मनाया गया।
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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा