कुशीनगर, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । स्वतंत्रता के संघर्ष में संस्कृत कवियों ने महाकाव्य खंडकाव्य आदि विशाल ग्रंथों की लेखन परम्परा से अलग हटकर अपेक्षाकृत लघुकाय गीतिकाव्यों की परम्परा को प्रारंभ किया। अंग्रेजों से छुपाकर अपना संदेश क्रांतिकारियों में पहुंचाने के लिए भी संस्कृत भाषा को माध्यम बनाना उस समय सूझ-बूझ का काम था। जानकीवल्लभ शास्त्री की ‘निनादय नवीनामये वाणि वीणाम्’ उस समय की अति प्रचलित रचनाओं में एक थी। स्वतंत्रता के बाद भी अर्वाचीन कवियों ने गीतिकाव्य की परम्परा को नए रूप में देखा और लोकगीत से संबंधित विधाओं को भी अपने मौलिक साहित्य में स्थान दिया। उक्त बातें बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर एवं वैश्विक संस्कृत मंच के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित संस्कृत सप्ताह व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘अर्वाचीन संस्कृत गीतिकाव्य परम्परा’ विषयक तृतीय विशिष्ट व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रो. राजेन्द्र त्रिपाठी ‘रसराज’ ने कहीं।
स्वातंत्र्योत्तर कवियों में उन्होंने श्रीनिवास रथ, राधावल्लभ त्रिपाठी, राजकुमार, अभिराज राजेन्द्र मिश्र आदि कवियों एवं उनकी रचनाओं पर प्रकाश डाला।
व्याख्यान के संयोजक डॉ. सौरभ द्विवेदी ने बताया कि प्रत्येक श्रावण मास की पूर्णिमा को विश्व संस्कृत दिवस मनाया जाता है। 1969 में भारत सरकार ने संस्कृत भाषा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित एवं संवर्धित करने हेतु इसे प्रथम बार मनाया था।
श्रावण मास की पूर्णिमा को ही रक्षाबंधन पर्व के होने के कारण शैक्षणिक संस्थानों में अवकाश होता है। अतः सभी संस्थाएं इस तिथि के पूर्व और उपरान्त विश्व संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में विविध शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में विनोद मोहन मिश्र ने संस्कृत दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए संस्कृत भाषा की सुदीर्घ साहित्य परम्परा के अनुशीलन की बात की।
व्याख्यान का प्रारंभ श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय हाटा के विद्यार्थियों के मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ। आदित्य पाण्डेय ने संस्कृत गीत प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण एवं प्रास्ताविकी प्रोफेसर कृष्ण चंद्र चौरसिया ने प्रस्तुत किया। आभार ज्ञापन डॉ. राजेश चतुर्वेदी एवं शांति पाठ डॉ. श्याम कुमार ने किया। डॉ. अभिषेक पाण्डेय, डॉ. कुलदीपक शुक्ल, डॉ. राजेश मिश्र आदि का सहयोग रहा।
(Udaipur Kiran) / गोपाल गुप्ता / Siyaram Pandey