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महाकुम्भ से संतों ने किया ‘न हिन्दू पतितो भवेत्’ का उद्घोष

संत समागम को संबोधित करती साध्वी उर्मिला
संत समागम में स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती
संत समागम को संबोधित करते संत रतन गोसांई
संत समागम को संबोधित करते उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक
समागम में उपस्थित संत

महाकुंभ से संतों ने दिया सामाजिक समरसता का संदेश, कहा- सामाजिक समरसता से महान बनेगा भारत

महाकुंभनगर, 21 जनवरी (Udaipur Kiran) । तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित महाकुम्भ 2025 न सिर्फ धर्म, संस्कृति व अध्यात्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने जा रहा है बल्कि सामाजिक समरसता की दिशा में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। महाकुंभ में आयोजित संत समागम में हिस्सा लेने आये देशभर के संतों ने सामाजिक समरसता का संदेश दिया।

महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 17 में आयोजित दो दिवसीए अखिल भारतीय संत समागम में देश के सभी प्रान्तों से आये ​​विभिन्न मत पंथ व सम्प्रदायों के पूज्य संतों ने एक स्वर में न हिन्दू पतितो भवेत् का उद्घोष किया। संतों ने कहा कि सभी हिन्दू भाई हैं। हिन्दू कभी अछूत नहीं हो सकता। जातिभेद, विषमता, अस्पृश्यता इनका पालन करना अधर्म है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व विश्व हिन्दू परिषद के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपस्थिति में सैकड़ों की उपस्थिति में संतों ने समाज से सामाजिक विषमता को दूर करने का संकल्प लिया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल,संघ के अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख रामलाल व उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने संतों का स्वागत व सम्मान किया।

संत समागम को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि हिन्दू समाज को तोड़ने के अनेक प्रयत्न हुए। सनातन के अन्दर अस्पृश्यता नाम की चीज नहीं थी। 1857 से पहले की कोई भी पुस्तक जातिगत विभाजन से संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा कि संतों के बीच भेद बांटे गये। ज​बकि रामायणा व महाभारत के रचनाकार इसी पृष्ठभूमि से आते हैं।

पंजाब से आयीं साध्वी उर्मिला ने कहा कि जाति पांति के चक्कर में न पड़ें। आपस में छिन्न भिन्न रहेंगे तो धर्म को मजबूत नहीं कर पायेंगे। सामाजिक समरसता ​के लिए आवश्यक है पहले संत अपने मन से भेदभाव को दूर करें तब समाज भी आपका अनुशरण करेगा। संत को सबको एक समान दृष्टि से देखना चाहिए।

पंचाब के ही र​वीन्द्र गिरि ने कहा कि अनुसूचित समाज के बंधुओं के बीच गौरवमयी इतिहास का बोध कराने की आवश्यकता है। सामाजिक समरसता से महान बनेगा भारत।

महंत विकास दास ने कहा कि प्रभु श्रीराम ने किसी को छोटा बड़ा नहीं माना। उन्होंने सबको गले लगाया। भक्तों का विश्वास संतों पर होता है। समरसता का रास्ता हम नहीं बतायेंगे तो कौन बतायेगा।

पश्चिम बंगाल के जलपाई गुड़ी से आये संत रतन गोंसाई ने कहा कि पश्चिम बंगाल में सनातन को मिटाने के लिए हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है। सनातन भाई डर की वजह से ​मुस्लिम बन रहे है। संत रतन गोंसाई ने कहा कि सामाजिक समरसता से ही भारत महान बन सकता है।

तेलांगाना से आये संग्राम महाराज ने कहा कि​ 80 प्रतिशत अनुसूचित समाज मुसलमान बन गया। क्योंकि संत गण उनके बीच गये नहीं हैं। अधिकांश संत अस्पृश्य जातियों के भक्तों के यहां जाते नहीं हैं। सबके अंदर भगवान हैं तो भेदभाव नहीं करना चाहिए। आज

गरीबों का कोई अखाड़ा नहीं है। बंजारा समाज भटका नहीं है। बंजारा समाज से हूं। अपने आचार विचार संस्कार को बचाकर रखा है।

उत्तराखण्ड से आये महामण्डलेश्वर सुरेश राठौर ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के रूप में व वेदव्यास ने महाभारत व डा. आम्बेडर ने संविधान दिया। उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता सामाजिक कुरीति है। इसे दूर करना आवश्यक है।

संत राम नारायण ने कहा कि मानव-मानव एक समान है। गुरू घासी दास ने कहा कि हम सब एक हैं। ऊंचनीच का भेदभाव नहीं होना चाहिए। सामाजिक समरसता के निर्माण के लिए संतों को आगे आना होगा।

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(Udaipur Kiran) / बृजनंदन

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