जम्मू, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने 23 अगस्त 1985 आज ही के दिन राँजड़ी, जम्मू से पहली बार सत्य भक्ति को संसार में फैलाने की शुरूआत की। सत्य पुरुष का संदेश लेकर कोई संत जीवों को काल के जाल से छुड़ाने के लिए संसार में आता है। जैसे प्रभु राम जी का संदेश लेकर एक हनुमान रावण की लंका को जलाकर सीता जी को ले जाने के लिए काफी था। कई हनुमान नहीं चाहिए थे। इसी तरह एक संत सत्य पुरुष का संदेश लेकर इस धरा पर जीवों को काल रूपी राक्षस से छुड़ाने के लिए संसार में आता है। संतों की भीड़ उसका संदेश लेकर नहीं आती। कबीर साहिब की भविष्यवाणी में भी आता है कि यहीं से अगली बार जीवों के कल्याण की शुरूआत की जायेगी।
शुरू-शुरू में राँजड़ी और आस-पास के गाँव के शिवदास भगत, मिलखाराम, आदि अलग अलग जातियों के लोग आपसे जुड़े। आपने जाति-बिरादरी, धर्म से परे होकर सत्य भक्ति का संदेश देना शुरू किया। अपने सद्गुरु स्वामी गिरधरानन्द परमहंस जी के बचनानुसार आपने कभी किसी की जाति पूछकर नाम नहीं दिया। भगत बिरादरी के लोग ज्यादा होने से लोगों ने आपको शुरू शुरू में छोटी जाति का गुरु समझा। जाति-पाति से ऊपर होने से कबीर साहिब की शिक्षा को अधिकतर छोटी जाति के लोगों ने अधिक अपनाया है। आपने इस मिथक को तोड़ा और करीब 5 लाख ब्राह्मणों को नाम दिया, इतने ही क्षत्रियों को भी नाम दिया, इतने ही महाजनों को भी नाम दिया और छोटी जाति के लोगों को भी नाम दिया। आपने कबीर साहिब की संदेश सबको समान रूप से समझाया। सच्चे संतों की तरह धर्म के आधार पर भी आपने कोई अन्तर नहीं रखा। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख सब आपके शिष्य हैं।
राँजड़ी में आपने एक झोंपड़ी से शुरूआत की और आज पूरे देश में 400 से ऊपर आश्रम हैं, 22 लाख से ऊपर शिष्य है और विदेश में भी जापान, अमेरिका, नेपाल, यूक्रेन आदि देशों में आपके जगह जगह शिष्य हैं। आज जब राँजड़ी जम्मू का सबसे विशाल धार्मिक स्थान बन गया है, जहाँ 1 लाख तक लोगों के रहने की सुविधा है, आप उसी झोंपड़ी में आज भी रहते हैं। 1967 से 1991 तक 24 साल सेना में रहकर आपने देश की सेवा की। फिर जीवों के कल्याण के लिए लग गये।
शुरू से ही आपको घोर निन्दा और विरोध का सामना करना पड़ा। जिन लोगों के व्यापारों को आपसे चोट पहुँची, वो सब मिलकर निन्दा करने लगे। उदाहरण के लिए सयानों ने घोर निन्दा की। क्योंकि शुरू शुरू में जब सैंकड़ों भूत-प्रेत की बाधा वाले आपके पास आकर, सत्य नाम को पाकर बिलकुल ठीक हो गये तो लोगों ने आपको पहले सयाना समझ लिया। फिर आपने सच्चे संतों की शिक्षा बताई। सब संत बनकर घूम रहे थे। इसलिए वो भी निन्दा करने लगे। आपने सत्य नाम का रहस्य दिया। आपने बताया कि जो नाम संसार के लोग जानते हैं, वो सत्य नाम नहीं है। वो तो किताबों में हजारों नाम हैं। फिर सद्गुरु की क्या जरूरत पड़ गयी। आपने समझाया कि सत्य नाम कहने, सुनने में नहीं आता। सद्गुरु वो है, जो सत्य पुरुष को पा चुका है, सत्य पुरुष को जानता है। उस सत्य पुरुष में समाकर उसकी किरणें शिष्य को प्रदान करता है, वो नाम है। वो नाम स्वंय सत्य पुरुष है। अन्य किसी नाम से जीव संसार सागर से पार नहीं हो सकता है। यह बात अन्य किसी को समझ में नहीं आई, क्योंकि कोई वहाँ पहुँचा नहीं, कोई उसे जानता नहीं। केवल कुछ किताबों में पढ़कर बोलते हैं। इसलिए सब विरोध करने लगे। यह निन्दा इसी कारण से संतों की होती आई और होती रहेगी।
सत्य पुरुष की इच्छा से जीवों के कल्याण के लिए एक संत संसार में आता है। संतों के झुंड नहीं आते। उस संत सद्गुरु के पास जो सत्य पुरुष का सत्य नाम होता है, वो अन्य गुरुओं के पास नहीं होता। इसलिए आपने एक डायरी में लिखा था कि जो वस्तु मेरे पास है, वो ब्रह्माण्ड में किसी के पास नहीं है। एक शिष्य ने वो डायरी देख ली और फिर वो बात सबको पता चल गयी। आपने केवल सत्य भक्ति का ही संदेश नहीं दिया। आप एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। समाज सुधार का कार्य भी किया। शराब न पीना, माँस न खाना, पराई स्त्री की तरफ नहीं जाना, जुआ नहीं खेलना, चोरी नहीं करना, हक की कमाई खाना आदि नियम बनाकर समाज सुधार का कार्य किया है। हजारों लड़कियों की शादियाँ करवाईं।
आपने कभी दुनिया को अपनी शक्तियाँ नहीं दिखाईं। जो आप हैं, कभी पूरा नहीं बोला। जो वस्तु आपके पास है, ब्रह्माण्ड में कहीं नहीं है, यह भी आपके शिष्य ने आपकी डायरी से पढ़कर सबको बता दिया था। जब-जब भी संसार में प्राकृतिक आपदाएँ आईं, देश के कोने कोने में आपके आश्रमों को कभी कोई हानि नहीं हुई। आपने आपदाओं से प्रभावित सबकी मदद भी की। जब कोविड का प्रकोप फैला तो आपने अपने 3 आश्रमों को कोविड सेंटर बना दिया और जब जब भारत में कहीं भी आपदा आई, आपने जगह जगह लंगर खोल दिये और ये लंगर केवल 1-2 दिन या सप्ताह नहीं, महीनों तक चलाए।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा / बलवान सिंह