जम्मू, 10 नवंबर (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज सुंगल रोड़ अखनूर में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि चारों पदार्थ साहिब की भक्ति की एक ही राह में मिल जाते हैं। पर जिज्ञासा होनी चाहिए कि प्रभु को जानें, आत्म तत्व को जानें। जो ऐसा सोच कर भक्ति रहा है, वो बड़ा भाग्यशाली है।
जगत का हमेशा नाशवान समझना। यह मृगमृचिका के सुख की तरह है। रेगीस्तान का हिरण दूर चमकती रेत को पानी समझता है। वो भागता जाता है पर पानी नहीं मिलता। रास्ते में ही मर जाता है। पानी है ही नहीं। मिलेगा कैसे। इसी तरह संसार में सुख नहीं है। दिखाई पढ़ता है कहीं दूर। धर्मदास जी ने साहिब से बहुत प्रश्न पूछे।
एक जगह वो पूछ रहे हैं कि हे सद्गुरु, भक्ति के धातु को समझाओ कि भक्ति कैसे करें। साहिब कह रहे हैं कि चार चीजों को पाकर भक्त सुखी रहेगा। पहला विवेक। वो आपका साथी है। उदाहरण के लिए कभी आदमी क्रोध में आकर किसी से लड़ाई करता है और मार डालता है। अगर उस जगह थोड़ा विचार करना था कि कहीं लग गयी, मर गया तो जेल जाना पड़ेगा तो वहाँ बात खत्म हो जाती। यह विवेक, यह विचार भक्ति से उत्पन्न हो जाता है। मोक्ष कैसे प्राप्त करता है। इन्हीं सद्गुणों को ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करता है। साहिब कह रहे हैं कि इन्हीं सबको पाकर वो मोक्ष की प्राप्ति करता है।
दूसरा वैराग्य। वैराग्य यानी संसार के पदार्थों के प्रति आकर्षण खत्म हो जाए। लोग सोचते हैं कि विदेशों में आनन्द है। पर सच बताता हूँ कि भारत के अलावा आनन्द कहीं नहीं है। जगत के पदार्थों के प्रति आसक्ति ही जन्म मरण का कारण है। शरीरधारी कभी सुखी नहीं हो सकता है। इसे पाकर आत्मा के कल्याण का प्रयास करो।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा