
कोलकाता, 27 (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर विवादों में घिर गया है। आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में हुए दुष्कर्म एवं ह्त्या मामले के खिलाफ मुखर रहे जूनियर डॉक्टरों के प्रतिनिधि डॉ. देबाशीष हलदार को ऐसी जगह वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर पोस्टिंग दी गई है, जहां आधिकारिक रूप से कोई रिक्ति मौजूद ही नहीं है।
पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट (डब्ल्यूबीजेडेडीएफ), जो इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा है, ने मंगलवार को जानकारी दी है कि हाल ही में डॉ. हलदार सहित कई जूनियर डॉक्टरों ने राज्य सरकार के अस्पतालों में वरिष्ठ रेजिडेंट पद के लिए काउंसलिंग में हिस्सा लिया। नियमों के अनुसार, वरिष्ठ रेजिडेंट्स की पहली नियुक्ति ग्रामीण अस्पतालों में होती है, और काउंसलिंग के दौरान डॉक्टरों को उपलब्ध अस्पतालों में से विकल्प चुनने का अवसर दिया जाता है।
हलदार के अनुसार, उन्होंने हावड़ा जिला अस्पताल को चुना था। लेकिन जब पोस्टिंग सूची जारी हुई, तो केवल उन्हें ही सूची से इतर मालदा जिले के गाजोल ग्रामीण अस्पताल में नियुक्त किया गया। हलदार ने दावा किया कि जिस गाजोल अस्पताल में उन्हें भेजा गया, वह अस्पताल उस समय की स्वीकृत रिक्तियों की सूची में था ही नहीं।
डब्ल्यूबीजेडेडीएफ ने इस घटनाक्रम को सरकार की ‘बदले की भावना’ का नतीजा बताया है। संगठन का कहना है कि आर.जी. कर केस के विरोध में सबसे आगे रहने के कारण ही सरकार ने हलदार को निशाना बनाया। फ्रंट ने मंगलवार दोपहर राज्य स्वास्थ्य विभाग को इस मामले में औपचारिक डिपुटेशन सौंपने का निर्णय लिया है।
उल्लेखनीय है कि अगस्त 2024 में कोलकाता स्थित आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर का शव सेमिनार हॉल से बरामद हुआ था। इस सनसनीखेज रेप और हत्या के मामले में कोलकाता पुलिस का पूर्व सिविक वोलंटियर संजय रॉय दोषी पाया गया था और उसे उम्रकैद की सज़ा दी गई थी। हालांकि, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने कलकत्ता हाई कोर्ट में रॉय के लिए फांसी की सज़ा की मांग की है।
पीड़िता के माता-पिता ने भी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर इस मामले में बड़ी साजिश का खुलासा करने और यह जानने की मांग की है कि क्या संजय रॉय के साथ और लोग भी इस अपराध में शामिल थे।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
