मंडी, 15 जुलाई (Udaipur Kiran) । बरसात का मौसम जहां एक ओर जल स्रोतों को पुनर्जीवित करता है, वहीं दूसरी ओर पीने के पानी में जल प्रदूषण की समस्या को और गंभीर बना देता है। बारिश के कारण नदियोंए झीलों और भूमिगत जल स्रोतों में प्रदूषित तत्व कई कारणों से मिल जाते हैं, जिससे पेयजल की गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है। इनमें प्रमुख है बरसात के दौरान नाले और सीवरेज का पानी ओवरफ्लो होकर नदियों और झीलों में मिल जाना,बरसात के पानी के साथ खेतों में उपयोग किए गए कीटनाशक और उर्वरको का बहकर जलाशयों में पहुंच जाना, शहरी कचरे का बरसात के पानी के साथ बहकर जलाशयों में मिल जाना तथा भूमि कटाव के कारण मिट्टी का जलाशयों में जमा हो जाना। परिन्नाम स्वरूप लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल प्राप्त करने में कठिनाई होती है और प्रदूषित जल पीने से डायरिया, हैजा, टाइफाइड और अन्य जल जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जल प्रदूषण के कारण पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ता है।
सहजन और नागफनी पानी साफ करने में कारगर
वल्लभ कालेज मंडी में बाटनी विभागाध्याक्ष प्रो. तारा देवी सेन का कहना है कि बेशक हम घरेलु स्तर पर वाटर फिल्टर या प्यूरीफाई का प्रयोग करें, लेकिन हमारी पारंपरिक विधियों में सहजन,मोरिंगा ओलीफेरा और नागफनी ओपंनिया फिकस इंडिका जड़ी बूटी कारगर हैं। इन दोनों ही जड़ी बूटियों पर हुए कई शोध यह साबित करते हैं कि पानी में सहजन के बीज और नागफनी का जेल मिलाए जाने पर यह पानी की दूषित पदार्थों को साफ कर देता है। सहजन एक अत्यंत पौष्टिक पौधा है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स और एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं। यह पौधा प्रदेश के 1500 मीटर तक आसानी से उपलब्ध है और कई रोगों में उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसे अंग्रेजी में ड्रमस्टिक और स्थानीय भाषा में सुननी के नाम से जाना जाता है। हालांकि, मंडी जिले के स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान यह पता चला कि अधिकांश लोग नहीं जानते कि उनके नेचुरल हैबिटैट में मिलने वाला सुननी का पौधा ही मोरिंगा या सहजन है। इस जानकारी के अभाव में यह पौधा अपने औषधीय और पोषणात्मक गुणों के बावजूद अज्ञात और अप्रयुक्त रह जाता है। जबकि नागफनी जिसे स्थानीय भाषा में द्रराभड़ छूंह या काबुली छूंह के नाम से जाना जाता है, यहां के लोगों के लिए एक बेकार पौधा माना जाता है। लेकिन, दुनिया के कई देशों में इसे एक महत्वपूर्ण खाद्य पौधे के रूप में उगाया और उपयोग किया जाता है। ऐसे में इन दोनों पौधों का परंपरागत विधियां के रूप में उपयोग लोगों को घर में ही दूषित पानी से मुक्ति दिला सकता है और एक अतिरिक्त आय का स्त्रोत भी हो सकते हैं। मोरिंगा के बीज और नागफनी का जेल पर्याप्त मात्रा में घर में रखे पानी की बर्तनों में भी डाला जा सकता है। यही नहीं इनकी पर्याप्त मात्रा को कुंओं व बावडिय़ों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व पानी के गंदगी को पूरी तरह से साफ कर देते हैं।
इस तरह से साफ होता है पानी
डा.तारा के अनुसार कई शोध कार्यों से यह प्रमाणित है कि मोरिंगा के बीजों को पीसकर उसके पाउडर से जल गुणवत्ता में 80 प्रतिशत तक सर्वोत्तम शुद्धिकरण परिणाम मिले हैं और दुनिया के कयी विकासशील देश इसका उपयोग जल शोधक के रूप में करते हैं। मोरिंगा बीज में पानी में घुलनशील प्रोटीन जो एक स्कंदकारी के रूप में कार्य करता है और कठोरता के संदूषण को 40 प्रतिशतए गंदलापन को 60 प्रतिशत, क्लोराइड को 61 प्रतिशत तक कम करता है। इस इसमें एंटी-माइक्रोबियल गुण शामिल होते हैं जो कुल कोलीफॉर्म को 80 प्रतिशत तक हटा सकता है। नागफनी और सहजन संयुक्त रूप से 92 से 99 प्रतिशत तक गंदगी को हटाने में सक्षम हैं। सहजन के बीजों में प्रोटीन होता है जिसमें सक्रिय जमावट गुण होते हैं और कई देशों में गंदगी हटाने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। मोरिंगा के बीज मुख्य रूप से चार्ज न्यूट्रलाइजेशन के माध्यम से संचालित होते हैं जबकि नागफनी मुख्य रूप से ब्रिजिंग जमावट तंत्र के माध्यम से संचालितहोता है। कैक्टस नागफनी के आंतरिक और बाहरी पैड में पॉलीगैलेक्ट्यूरोनिक एसिड होता है, जो जमावट क्षमताओं वाला एक आयन बायोपॉलिमर है। लोग अपनी सुविधा और उपलब्धता के हिसाब से नागफनी या फिर सहजन बिज पाउडर या फिर दोनों का उपयोग कर सकते हैं ।
इतनी मात्रा में डालें मोरिंगा व नागफनी का जेल:
अगर पानी कम गंदा है तो एक लीटर पानी में 50 एमजी से 150 एमजी मोरिंगा के बीजों का पाउडर डाल सकते हैं। अगर पानी ज्यादा गंदा हो तो 200 एमजी से 250 एमजी तक डाल सकते हैं। इसी तरह प्राकृतिक स्रोत इसमें बावड़ी में या कुओं जिसमें 100 लीटर से अधिक पानी हो उसमें हर सप्ताह 100 ग्राम मोरिंगा के बीजों का पाउडर और नागफनी का जेल पानी साफ करने के लिए डाला जा सकता है।
खेती को मिले बढ़ावा
डा. तारा सेन ने बताया कि क्योंकि बरसात में वन महोत्सव के उपलक्ष्य में बड़े स्तर पर पौधे लगाए जाते है। इस मौसम में मोरिंगा की खेती को बढ़ावा दिया जाए तो भूजल दूषित होने से बचाया जा सकता है। मोरिंगा 1500 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से उगाया जा सकता है। जबकि नागफनी 2500 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से उग सकता है। इनको स्थानीय लोगों, वन विभाग और पंचायतों के सहयोग से बड़े स्तर पर उगया जा सकता है। वहीं इनके औषधीय और खाद्य गुणों के कारण इनकी मांग भी अधिक रहती है जो रोजगार का जरिया बन सकता है। मोरिंगा की खेती और जल शोधक के रूप में उपयोग अभी कर्नाटक व तमिलनाडू राज्य में अधिक होती है। मोरिंगा के बीजों का पाउडर और नागफनी का जेल पेयजल को साफ रखने में मददगार है। उपलब्धता के अनुसार इनमें से किसी एक को भी लोग शुद्धिकरण के लिए उपयोग कर सकते हैं। प्रदेश में साफ पानी उपलब्ध करवाने के लिए यह विधि कारगर साबित हो सकती है।
(Udaipur Kiran)
(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा शुक्ला