मुरादाबाद, 25 दिसंबर (Udaipur Kiran) । हम सबकाे अपने धर्म कर्म और कर्तव्य का पालन करते हुए भगवान का स्मरण हर परिस्थिति में करते रहना चाहिए। यह बातें बुधवार को पंचायत भवन परिसर में जिगर मंच पर श्री हरि विराट संकीर्तन सम्मेलन समिति के तत्वावधान में 85वें वार्षिकोत्सव पर आयोजित आठ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिन भागवत भास्कर श्रीकृष्ण चंद्र शास्त्री ठाकुर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही।
श्रीकृष्ण चंद्र शास्त्री ठाकुर जी महाराज ने आगे कहा कि परीक्षित जी ने शुकदेव जी से पूछा कि जल्दी मरने वाले की मुक्ति का मार्ग क्या है, धर्म क्या है, अधर्म क्या है, गोविंद से मिलने का सहज पूछा ताे शुकदेव जी ने सब विस्तार से बताया। महाराज जी ने बताया कि जब राजा परीक्षित को श्राप लगा तब राजा परीक्षित जरासंध का मुकुट पहने थे। बेईमानी के धन में कलि का वास है। जब महाराज परीक्षित धर्मात्मा, पुण्यात्मा, ऋषि, मुनियों, सन्तों की सेवा पूजा करने वाले राजा थे। उनकी बुद्धि भी विक्रित हुई तो आप और हम कैसे बच सकते हैं। केवल और केवल हरि नाम के जाप से ही हम बच सकते हैं। अन्य कथाओं का भी वर्णन किया, जैसे अंगुली माल की कथा, जड़ भरत की कथा, खगोल भूगोल की कथा, अजामिल की कथा, रहुगुण कथा, पृथ्वी का भार कम करने को सूकर का रूप रखा, हिरण्यकश्यप का वध की कथा, भगवान कपिल देव एवं प्रहलाद चरित्र का वर्णन किया।
(Udaipur Kiran) / निमित कुमार जायसवाल