मथुरा, 24 अगस्त (Udaipur Kiran) । संसद में संत-धर्माचार्यों को भी उचित स्थान मिलना चाहिये। जिससे भारत की संस्कृति अनुरूप नियम-कानून बनाकर देश में सनातनी विचारों का सम्मान बचाया जा सके। इसके लिये सभी राजनैतिक दलों को प्रयास करने चाहिये। देवकीनंदन ठाकुरजी महाराज ने शनिवार श्रीमद्भागवत प्रवचन के दौरान यह माँग उठाते हुये सनातन धर्म के अनुयायियों से इस मुहिम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता बतायी।
वृंदावन छटीकरा मार्ग स्थित ठा. श्रीप्रियाकान्तजु मंदिर में आयोजित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में शनिवार बोलते हुये देवकीनंदन महाराज ने कहा कि भारत सनातनियों का देश है। सनातन धर्म विश्व में मंगल की कामना करता है, लेकिन सनातनी अपने ही यहाँ कई मोर्चों पर दूसरी विचारधाराओं से घिरे हुये हैं । विधर्मी सनातन धर्म के विरूद्ध अपने मनमाने निर्णय लागू करवाने में सफल रहते हैं।
शनिवार को भक्तों के बीच अपने विचार रखते हुये देवकीनंदन महाराज ने कहा कि संसद में हर समाज से प्रतिनिधि आरक्षित हैं। इसी तरह साधु-संत-धर्माचार्य समाज के भी 50-55 प्रतिनिधि होने चाहिये। जिससे हम आगे की पीढ़ी के लिये भारत की सनातन संस्कृति और संस्कारों को सुरक्षित रख सकें। इसके लिये हर स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। इससे पूर्व मीडिया से बातचीत में उन्होने कहा कि देश में लिव-इन-रिलेशन, नया एडल्ट्री कानून लागू हो गया, समलैंगिक विवाह हेतु कानून की पैरवी करने वाले मौजूद हैं। जबकि गौ हत्या, धर्म-परिवर्तन, ईशनिंदा जैसे विषयों पर राष्ट्रीय कानून बनाने की आवश्यकता है, लेकिन इसे आगे बढ़ाने वाले कम हैं। इसके लिये संसद में सही-गलत बताने वाले धर्माचार्य होने चाहियें जो कानूनों को सनातन की कसोटी पर कस सकें। गौरतलब है कि संसद में धर्माचार्यों के आरक्षण के समर्थन में पूर्व काँग्रेसी प्रमोद कृष्णम एवं अन्य धर्माचार्य भी आगे आये हैं।
(Udaipur Kiran) / महेश कुमार / बृजनंदन यादव