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हत्या मामले में रिश्तेदार की गवाही अस्वीकार्य नहीं : हाईकोर्ट

प्रयागराज के इलाहबाद हाईकोर्ट का छाया

–गवाही की साक्ष्य से पुष्टि पर मिली सजा बरकरार –1983 की घटना में जीवित आरोपितों को उम्रकैद की सजा की पुष्टि, अपील खारिज

प्रयागराज, 16 मई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी गवाह के बयान को सिर्फ इसलिए अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि वह मृतक का करीबी रिश्तेदार हैं। चश्मदीद की गवाही को केवल मृतक से रिश्ते के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने हत्यारोपितों को सत्र अदालत से मिली उम्रकैद की सजा की पुष्टि करते हुए बहाल रखी है और सजा के खिलाफ अपील खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला तथा न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने अत्तर सिंह और अन्य की अपील पर दिया।

गाजियाबाद निवासी ब्रह्मजीत ने 28 अक्टूबर 1981 को अपने पिता की हत्या करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। ट्रायल व अपील विचाराधीन रहते कई आरोपितों का निधन हो गया। जीवित आरोपितों बनी सिंह, ओम प्रकाश, चित्तर, सरनी, तोता राम की अपील कोर्ट ने खारिज कर दी। कहा गया कि गवाह मृतक के रिश्तेदार हैं। कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है। ऐसे में इनकी गवाही को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने इस दलील को मानने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि गवाही साक्ष्य समर्थित है तो उसके रिश्तेदार होने से साक्ष्य पर फर्क नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने बनी सिंह, ओम प्रकाश, चित्तर, सेरनी, तोताराम की दोषसिद्धि की पुष्टि की। अपील खारिज कर दी। जमानतदारों को मुक्त करते हुए अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेकर सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश दिया।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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