मुंबई, 8 मार्च (हि.स,)। बांबे हाई कोर्ट ने एख डॉक्टरों को छह महीने की सजा सुनाई है। डॉक्टर अदालती आदेश के बावजूद अपनी पत्नी और दो बेटियों को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था। अदालत की अवमानना के लिए उन्हें छह महीने जेल की सजा सुनाई गई है।
न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने डॉक्टर के व्यवहार की कड़ी आलोचना की। पीठ ने डॉक्टर को सजा सुनाते हुए कहा कि उसे कानून का कोई सम्मान नहीं है। अदालत के आदेशों की कोई परवाह नहीं है। उसने जानबूझकर अपनी पत्नी और अपनी बेटियों को भरण-पोषण देने की उपेक्षा की। यह एक गंभीर मामला है। प्रतिवादी डॉक्टर को अपनी पत्नी और बच्चों के कल्याण की कोई चिंता नहीं है। परिवार को छह साल तक कष्ट सहना पड़ा। क्योंकि डॉक्टर ने अपने कानूनी और नैतिक दायित्वों को पूरा करने से इनकार कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने हर संभव तरीके से अदालत के आदेशों का पालन करने से बचने की कोशिश की है। डॉक्टर ने बार-बार अदालती आदेशों का उल्लंघन किया है। अदालत ने उसे छह महीने की सजा सुनाते हुए कहा कि उसके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई जा सकती। सुनवाई के दौरान डॉक्टर अदालत में मौजूद थे, इसलिए कोर्ट ने उन्हें तुरंत पुलिस हिरासत में लेने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता दम्पति का विवाह 2002 में हुआ था। इसके बाद मामला पारिवारिक विवाद से शुरू हुआ। यह दम्पति 2009 से झगड़ रहा है। वर्ष 2009 में दायर पति की तलाक याचिका को वर्ष 2015 में पारिवारिक न्यायालय ने खारिज कर दिया था। तलाक की याचिका खारिज होने के बाद भी गुजारा भत्ते का मुद्दा अनसुलझा रहा। साल 2019 में हाईकोर्ट ने पति को अपनी पत्नी और दो बेटियों को प्रति माह 35,000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था। लेकिन पति द्वारा इस आदेश का पालन करने में बार-बार विफल रहने पर पत्नी ने जुलाई 2019 में अवमानना याचिका दायर की थी। पिछले कई वर्षों से पति ने अदालती नोटिस से बचने के कई प्रयास किए। पति ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील और समीक्षा याचिकाएं दायर की. लेकिन सभी खारिज कर दी गईं।
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(Udaipur Kiran) / वी कुमार
