Madhya Pradesh

बंगाल गैजेट में 1849 का संदर्भ – लोकमाता अहिल्याबाई अच्छी प्रशासक हैं, दृढ़ हैं, उनमें शौर्य और धैर्य है

भोपाल में हुए पाञ्चजन्य के सुशासन संवाद में बोलीं  अर्चना चिटनिस

– पाञ्चजन्य के सुशासन संवाद में बोलीं अर्चना चिटनिस

भोपाल, 24 अगस्त (Udaipur Kiran) । ईश्वर ने मुझे जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसे मुझे निभाना है। सत्ता के बल पर मैं जो भी करूंगी वो ईश्वर के पास जाकर मुझे जबाव देना पड़ेगा। मैं जो दे रही हूं, मुझे पता नहीं। उस ईश्‍वर ने जो अवसर दिया है, उसी निमित्‍त मैं अपना कर्तव्‍य न‍िभा रही हूं। यह कहना था लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का । दरअसल, मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे हॉल में पाञ्चजन्य के सुशासन संवाद में मध्य प्रदेश की पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने उनके त्रिशताब्दी जयंती वर्ष पर सुशासन की संस्कृति के मुद्दे पर अपनी बात रखी ।

उन्होंने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई को लेकर कहा कि उन्होंने कहा था कि उनके बारे में बंगाल गैजेट में 1849 में कहा गया था, जब उन्होंने बंगाल के एक मंदिर के लिए मूर्तियां भिजवाई थी, तो उस दौरान उनके लिए कहा गया था कि वो शासक हैं, जिनकी मूर्तियां एक दिन समाज बनाएगा और उनकी पूजा करेगा। वो अच्छी प्रशासक हैं, दृढ़ हैं, उनमें शौर्य और धैर्य है।

अर्चना चिटनिस लोकमाता अहिल्याबाई को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपोटिज्म वाले बयान का जिक्र किया और कहा कि प्रधानमंत्री जो कहते हैं कि नेपोटिज्म नहीं होना चाहिए, परिवारवाद नहीं होना चाहिए। माता अहिल्याबाई तो राजतंत्र के समय की शासिका थीं, लेकिन उनके सुशासन का एक उदाहरण जो 300 वर्षों के पहले की महिला ऐसा कर सकती हो, जो अपने ससुर जी के स्थान पर अकाउंट्स देखती थीं। उनके अपने पति ने, अपनी व्यक्तिगत निधि खत्म होने पर राशि मांगी तो उन्होंने उन्हें भी देने से मना कर दिया था और कहा कि आपने दफ्तर में आकर जो दुर्व्यवहार किया उसके लिए आप पर जुर्माना लगाया जाता है। बतौर प्रशासक उन्होंने ये जुर्माना तो लगा दिया, लेकिन बाद में उन्होंने अपने पति का जुर्माना भी खुद ही भरा।

भाजपा नेता ने कहा कि जब भी हम सुशासन की बात करते हैं तो बातें बड़ी होती हैं, लेकिन क्या कोई ऐसा निर्णय आप मानव सभ्यता के इतिहास में देखेंगे कि उनके राज्य में डाकुओं का प्रभाव बढ़ा, तो वे (माता अहिल्याबाई) घोषणा करती हैं को जो भी डाकुओं के इस प्रभाव से इस राज्य को मुक्त करेगा, उस व्यक्ति के साथ मैं अपनी बेटी मुक्ताबाई का विवाह कर दूंगी। 300 साल पहले माता अहिल्याबाई ने जाति के बंधन से बाहर जाकर यह निर्णय लिया था। उन्होंने ऐसा किया भी।

जब उनसे पूछा गया क‍ि जैसा आप बता रहीं हैं 300 वर्ष पहले एक महिला शासक में इतना कुशल नेतृत्व होना, इतना विश्वास होना उस नेतृत्व के लिए, लेकिन अहिल्याबाई से लोकमाता बनने का जो सफर है, उनके कौन से नेतृत्व के गुण थे, जिन्हें उनके ससुर ने देखा था? के जवाब में चिटन‍िस ने कहा, ये जो मानव जीवन होता है, इसमें बतौर शासक/ प्रशासक और सामान्य जीवन में कई स्तर की चीजें होती हैं। देवी अहिल्याबाई के लोकमाता बनने का जो रास्ता बनता है, उसके अनेक प्रसंग हैं। अगर हम बात करें कि महेश्वर में उन्होंने हथकरघा का प्रशिक्षण दिया और वहां पर एक व्यवसाय स्थापित किया। आज भी महेश्वरी कपड़ा बहुत ही विख्यात है। ये कार्य माता अहिल्याबाई ने उनके राज्य की ओर से लड़ने वाले सैनिकों की विधवाओं को ट्रेनिंग देकर उनकी स्किल को बेहतर बनाने के लिए किया, ताकि वो इससे अपना जीवन यापन कर पाएं। उन्होंने उन बहनों द्वारा बनाई जाने वाली साड़ियों की बिक्री की जिम्मेदारी स्वयं ली। ये लोगों से कनेक्ट करने का कितना अद्भुत तरीका है।

लोकमाता ने कन्याओं/ महिलाओं की शिक्षा, उनके अधिकारों को लेकर जो कदम उठाए थे, वो आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं। आप भी मंत्री रह चुकी हैं, उसको सोचते हुए किस तरह से सुशासन की दृष्टि से कार्य किए गए? जब उनसे यह पूछा गया तो अर्चना च‍िटन‍िस ने बताया क‍ि जब मैकाले की शिक्षा पद्धति शुरू हुई थी, तब भी अंग्रेज इस बात को कोट करते थे कि देश का कोई भी गांव विद्यालय से विहीन नहीं है। लोकमाता अहिल्या के राज में बेटियों की शिक्षा पर केवल ध्यान ही नहीं रखा जाता था, बल्कि उन्हें रेगुलर शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं की सैन्य टुकड़ी भी तैयार की। महिलाओं को युद्ध कौशल की शिक्षा भी दी थी। यहां तक कि जब हम सती प्रथा कि बात करें तो उन्होंने खुद अपने ससुर जी के कहने पर सती होने के निर्णय तक को वापस लिया था।

हम कहते हैं कि राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा कि खिलाफ आवाज उठाई थी और उसे धीरे-धीरे समाज से खत्म करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने (लोकमाता अहिल्याबाई) तो इसे खुद के जीवन में उतारा। उनके राज्य में स्त्री शिक्षा पर फोकस करने के साथ-साथ विधवाओं, जिनकी संपत्ति को शासन हड़प लेता था, उन्होंने नियम लाकर उसे बदला। लोकमाता अहिल्याबाई से जुड़े एक किस्से का जिक्र करते हुए चिटनिस कहती हैं कि एक बार माता अहिल्याबाई के पास एक विधवा आई और उसने उनसे कहा, “मेरे बेटे का देहांत हो गया हैृ। मेरे पास बहुत संपत्ति है, मेरे घर में कोई नहीं है। मेरी संपत्तियों पर मेरे रिश्तेदारों की नजर है। वे लोग मुझे बच्चे को गोद भी नहीं लेने देना चाहते हैं। इसलिए आप मेरी संपत्तियों को अपने खजाने में शामिल कर लीजिए। विधवा के प्रस्ताव पर लोकमाता ने कहा था कि मैं ऐसा नहीं करती। लेकिन, अगर तुम कुछ अच्छा कार्य करना चाहती हो तो मैं तुम्हें कुछ स्थान बताती हूं, वहां जाकर आप मंदिर और धर्मशाला का निर्माण करो।”

उनकी जो लोकमाता बनने की श्रद्धा वाली बात कही न आपने महेश्वर दरबारजी बातमें पत्र के पत्र संख्या 251 में अहिल्याबाई उल्लेख करती हैं, मैं राजकोश से एक अन्न भी ग्रहण नहीं करती हूं। अगर मैंने उससे एक कौड़ी भी ली है तो उसके बदले मैं पांच कौड़ी का भुगतान करूंगी। यहीं पारदर्शिता उन्हें लोकमाता बनाती है। लोकमाता ने उस वक्त में प्रशासन की कई सारी व्यवस्थाएं बनाई थीं। जिस टोल टैक्स की आज हम बात करते हैं, ये व्यवस्था उनके राज में थी। लोकमाता इस व्यवस्था का उपयोग नहीं करती थी। उन्होंने राज्य की दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया। उनके पास कोई भूमि नहीं थी, तो उन्होंने तीर्थ कर लगाया। उससे जो भी आय होती थी उसे भील समाज के लोगों के जीवन को बेहतर करने के लिए उन्होंने इसे खर्च किया। खास बात ये थी कि ये कर स्वैच्छिक था।

लोकमाता अहिल्याबाई 9/11 नीति लाई थीं, जिसमें ये प्रावधान था कि अगर आप 11 पेड़ लगाते हैं तो उससे प्राप्त होने वाले 9 पेड़ों के फलों पर राज्य का अधिकार होगा और 2 पेड़ों का अधिकार उसे लगाने वाले को दिया जाता था। उस दौरान ये नियम था कि आप सरकारी जमीन पर खेती कर सकते हैं, लेकिन शर्त ये थी कि उस जमीन के एक हिस्से पर आप को गौ चरण के लिए स्थान देना होगा। पीएम मोदी पानी, मिट्टी के प्रति संवेदनशील हैं। मध्य प्रदेश में हमने सिंचाई को पांच गुना बढ़ाया है। 2003 के पहले प्रदेश में जितने स्कूल थे उसके दुगुने स्कूल आज हैं।

वहीं, एक प्रश्‍न के उत्‍तर में च‍िटन‍िस बोलीं कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम अपने पहले संदेश में स्वच्छता की बात कही थी। ये जानकर आश्चर्य होगा कि लोकमाता अहिल्याबाई का जो सिटिजन चार्टर था उसमें गंदगी करने या फैलाने पर पेनल्टी थी। अगर हमें भारत का उदय करना है तो स्वच्छता की जो चेतना है वो हर भारतीय के अंदर होनी चाहिए, इस बात को हमने प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण में देखा है। स्वच्छता के साथ प्राथमिकता की जो बात आती है वो है बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ। साथ में वो दंड देने में वो जितनी संवेदनशील थीं, उतनी ही कठोर दंड भी देती थीं। उन्होंने अपने बेटे को भी दंडित किया था। इंदौर के आड़ा बाजार का जिक्र करते हुए अर्चना चिटनिस बताती हैं कि वो गाय के बछड़े को उनके बेटे के रथ ने कुचल दिया था, तो लोकमाता ने अपने बेटे को सजा सुनाई, जिसके बाद गायों ने आकर उन्हें दंडित नहीं करने की याचना की थी।

अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बात करते हुए अर्चना चिटनिस कहती हैं कि 2008-09 के दौरान महंगाई दर करीब 10 से 11 फीसदी थी, उस दौरान हमारी जीडीपी करीब 4-5 फीसदी के करीब थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोशिश करके उसे 7-8 फीसदी तक लाए। लोकमाता अहिल्या के समय भी ऐसा ही हुआ होगा, जब किसी अंग्रेज ने उन्हें हथियार खरीदने का ऑफर किया था तो उन्होंने उससे तीन बंदूकें खरीदी और अपने इंजीनियर्स को दे दिया, जिसके जरिए इंजीनियरों और अधिक बेहतर बंदूकें बनाई। कहा जाता है कि लोकमाता के राज में सिक्के थोड़े खुरदुरे थे, तो अंग्रेजों ने उन्हें चमकदार सिक्कों का ऑफर दिया था। तब लोकमाता ने कहा था कि मेरे सिक्कों की चमक से अधिक मेरे राज्य की चमक मायने रखती है। उन्होंने अपनी खुद की टकसाल बनाई।

उनका कहना था क‍ि आत्मनिर्भर भारत का इंडिया भी वहीं से प्रेरित है। मैं कोट करती हूं कि कई बार हम पॉपुलिस्टिक चींजें करने की कोशिशें करते हैं तो कई बार लंबे वक्त में वो देश हित में नहीं होती हैं। मैं ये बताना चाहूंगी कि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी केंद्र सरकार का जो बजट था वो बहुत ज्यादा लोकलुभावन नहीं था। वो बैलेंस्ड बजट था। देश हित के लॉन्गर इंट्रेस्ट में ऐसा बजट अहिल्याबाई, छत्रपति शिवाजी जैसे शासकों से मिलती है। जिस देश में माता अहिल्या जैसी महिला हुई हो वहां पर पश्चिम महिला सशक्तिकरण की बात करता है। मेरे देश में ऐसी महिलाएं हैं, जो देश, समाज और खंडित मंदिरों के पुनर्स्थापन को, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण को महत्व देती हैं। इंदौर का नवलखा चौराहा सभी को ज्ञात होगा। उस चौराहे का ये नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि वहां पर 9 लाख पेड़ थे। महिला का सशक्तिकरण समाज, देश का सशक्तिकरण है। संस्कृति की बात हम करें तो वो लावणी गाने वाले को अभंग की तरफ ले जाती थीं।

इस दौरान उन्‍होंने यह भी कहा कि हमें परिवार केंद्रित सोच से निकलना बहुत आवश्यक है। सफलता के मानक की बात करें तो मैटेरियल चीजों को हमें, समाज को नहीं रखना चाहिए। लेकिन, ये बात भी है कि भौतिक संसार में जीने के लिए वायबिलिटी बनी रहे इसके लिए हर पब्लिक सर्विस करने वाले के पास कुछ न कुछ व्यवसाय, खेत, खलिहान होना चाहिए। जिससे हमारा भी जीवन चल सके।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी / उम्मेद सिंह रावत

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