HEADLINES

प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक और साहित्यकार डॉ. सूर्यकांत बाली नहीं रहे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जताई संवेदना

डॉ. सूर्यकांत बाली। फोटो-फाइल

नई दिल्ली, 07 अप्रैल (Udaipur Kiran) । प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक और प्रतिष्ठित लेखक और साहित्यकार डॉ. सूर्यकांत बाली नहीं रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गहरी संवेदना व्यक्त की है। उनके साहित्य में राष्ट्र और राष्ट्र के मुद्दे सबसे ऊपर रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल राष्ट्रीय चिंतन को नई धार दी। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में शिक्षक और नवभारत टाइम्स से संबद्ध रहे। इसके बाद स्वतंत्र लेखन उनके जीवन का हिस्सा रहा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने शोक संदेश में कहा कि प्रख्यात लेखक और साहित्यकार डॉ. सूर्यकांत बाली के देहावसान का दुःखद समाचार है। डॉक्टर बाली ने अपने प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन से हिन्दी साहित्य का पोषण किया। उनकी रचनाओं से साहित्यिक और पत्रकारिता के क्षेत्र में नई रोशनी आई। हिंदी और संस्कृत भाषा के वे मूर्धन्य ज्ञाता थे। डॉ. बाली की विद्वत्ता के प्रति आदर व सम्मान से मैं नतमस्तक हूं। उनकी स्मृति में भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें। उनके परिवारजनों एवं मित्रों को मेरी गहरी संवेदनाएं। ईश्वर शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

सूर्यकांत बाली का जन्म 09 नवंबर, 1943 को मुलतान (अविभाज्य भारत) में हुआ था। हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एमए (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषा-विज्ञान में पीएचडी की। बाद में अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ा। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों-भारत की राजनीति के महाप्रश्न और भारत के व्यक्तित्व की पहचान के अलावा बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं। इनमें महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रमुख हैं। उन्होंने वैदिक कथारूपों को हिन्दी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया, इनके नाम हैं ‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। नवभारत टाइम्स के रविवार्ता में भारत के मील पत्थर पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा। यह ‘भारतगाथा’ पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुंचा।

भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् बाली ने नवभारत टाइम्स के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वो जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया।

—————

(Udaipur Kiran) / मुकुंद

Most Popular

To Top