
नागदा, 2 मई (Udaipur Kiran) । उज्जैन जिले के नागदा में शुक्रवार सुबह देश के जाने-माने राष्ट्रसंत ललित महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज की वाणी से मकरदं बरसा। पार्श्व पोखरशाला में खचाखच भरे सभागृह में संत को सुनने के लिए भारी संख्या में भीड़ उमड़ी। इस मौके पर संत ने जीवन जीने की कला पर रोचक तरीके से विचार रखे। कभी कहानियां कभी किस्से तो कभी हास-परिहास के माध्यम से अपनी बात सुखमय एवं आंनदित जीवन को जीने की कला को प्रमाणित किया।
सभागृह में कई संत की रोचक बातों से हंसी से भी वातावरण गूज उठा। इस मौके पर उन्होंनें लगभग एक घंटे के व्याख्यान मे जीवन में मिठास, आंनदमय जीवन, रिश्तों में मिठास, युवा पीढी को संस्कारवान बनाने तथा सास-बहू के झगड़ों का निराकरण करने के विषय पर घारा प्रवाह विचार रखे। उन्होंने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए 5 गुरूमंत्र भी बताए। उन्होंंने युवा पीढी को मां की ममता एवं पिता की क्षमता को कभी चुनौती नहीं देने की सीख दी । समाज में मां के महत्व तथा पिता के पुरूषार्थ पर विचार रखे। माता- पिता की त्याग तपस्या को गिनाया। वे बोले- मां की ममता और पिता की क्षमता को कभी चैलेंज मत करना।
राष्ट्रसंत ने खुशहाल जीवन जीने की कला को रेखाकित करते कहा सदैव सकारात्मक चिंतन रखे। जीवन में आह नहीं वाह करना सीखें।़ आप जिस भी स्थिति में उसे आंनद से जीए। जीवन में सुलगने वाली नहीं बल्कि सुलझाने वाली भाषा का उपयोग करें। मधुरवाणी का उपयोग करें। बच्चों को कार की जगह संस्कार दे। जीवन में रिश्तों को मजबूत बनाना है तो आलोचना की जगह अनुमोदना करना सीखे। ऐसा करने से जीवन मे ंमिठास आएगी। वे बोले घर में व्यक्ति उम्र से बड़ा नहीं होता बड़ा वह होता जो दिलों से बड़ा होता है। संत यहां पर लगभग 50 हजार किमी पैदल यात्रा के बाद पहुंचे थे। इस मौक पर उन्होंने बताया दिन के बाद उज्जैन महाकाल परिसर में व्याख्यान के बाद इंदौर में उनका कार्यक्रम है। इस बार हैदराबाद में चार्तुमास करेंगे।
जीवन को खुशहाल बनाने का पहला मंत्र आपने स्वयं को मोटीवेट करने का बताया। स्वयं को सुघारने की पहल करें। दूसरा मंत्र जीवन को जैसा भी है उसकों आंनद से जीने की आंदत डालों। तीसरा गुर सकारात्मक चिंतन, चौथा हर हाल में आंनद एवं पांचवा मघुरवाणी का दिया। इस मौके पर डा. शांतिप्रिय सागर महाराज ने भी विचार रखे। उन्होंने कहा जीवन में भलाई के बीज बोना चाहिए। विनम्र बनना है। घर परिवार मेें मिठास बनी रहेगी।
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(Udaipur Kiran) / कैलाश सनोलिया
