
जयपुर, 2 मई (Udaipur Kiran) ।जवाहर कला केन्द्र की अलंकार कला दीर्घा शुक्रवार की सुबह पारंपरिक रीति से बने प्राकृतिक रंगों की महक और देश के कई नामी कलाकारों की उपस्थिति से मुखरित हो उठी। यहां महोत्सव के परंपरागत स्वरूप को ध्यान रखते हुए जगह—जगह ईजल्स के बजाए सफेद आसन और लकड़ी से बनी चौकियां लगाईं गईं जिन पर बैठकर कलाकार अपनी अपनी सोच से चित्रों की पारंपरिक अंदाज में रचना कर रहे थे। मौका था जवाहर कला केेन्द्र की ओर से शुरू किए गए ‘रंगरीत कला महोत्सव’ के पहले दिन का। इस महोत्सव की खास बात ये थी कि इसमें शिरकत करने के लिए कला की तीन पीढ़ियों वरिष्ठतम, वरिष्ठ और युवा कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। महोत्सव 18 मई तक जारी रहेगा। इसमें 2 से 11 मई तक कला गुरु और युवा कलाकार रामायण, महाभारत, पर्यावरण, संस्कृति जैसे विषयों पर चित्र बनाएंगे। कला गोष्ठियां, कार्यशालाएं होंगी वहीं 10 मई से 18 मई दुर्गा सप्तशती पर आधारित कलाकृतियों की प्रदर्शनी और 12 से 18 मई तक महोत्सव के दौरान निर्मित चित्रों की प्रदर्शनी लगेगी।
केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) अलका मीणा, रंगरीत कला महोत्सव के समन्वयक वैदिक चित्रकार रामू रामदेव, कला गुरू समदर सिंह खंगारोत ‘सागर’, गोविन्द रामदेव, शैल चोयल, महावीर स्वामी और राम जायसवाल एवं केन्द्र के प्रोग्रामिंग कंसलटेंट डॉ. चंद्रदीप हाड़ा ने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का उद्घाटन किया। एडीजी अलका मीणा ने सभी कला गुरूओं सहित समारोह में शिरकत करने आए कलाकारों का अंग वस्त्र ओढ़ाकर और केन्द्र का पोर्टफोलियो भेंट कर अभिनंदन किया।
इस मौके पर प्रदेश के 75 वर्षीय नामी चित्रकार समदर सिंह खंगारोत ‘सागर’ ने कहा कि उन्होंने जवाहर कला केन्द्र के बैनर पर पहली बार कला का ऐसा महोत्सव देखा है जिसमें कला की तीन पीढ़ियों को आमंत्रित किया गया है। ऐसा करने से युवा कलाकारों को अपने से वरिष्ठ कलाकारों के अनुभवों का लाभ तो मिलेगा ही साथ ही उनकी खुद की रंग रीत में भी इजाफा होगा। चित्रकार समदर सिंह खंगारोत ने पारंपरिक वसली पेपर पर सूर्य पुत्र अश्विनी कुमार के चित्र की रचना शुरू की है। इस पेन्टिंग को खंगारोत जापानी टैम्परा कलर से बना रहे हैं।
बीकानेर से महावीर स्वामी ने बताया कि वो कल ही अपने विवाह की 42वीं वर्षगांठ और बीकानेर स्थापना दिवस आखातीज का उत्सव मनाकर लौटे हैं इसलिए वो कला के उत्सव में खुद को काफी उत्साही महसूस कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने बीकानेर की परंपरागत शैली में बंशी बजैया श्रीकृष्ण के अक्स की रचना शुरू की है।
दिल्ली से आई वरिष्ठ चित्रकार सुमित्रा अहलावत ने बताया कि वो जब भी राजस्थान आती हैं उन्हें यहां की धरती के रंग प्रभावित करते हैं। इस बार उन्होंने कैनवास पर एक्रेलिक रंग के माध्यम से राजस्थानी नृत्य घूमर को अपने सृजन का माध्यम बनाया है जिसमें वो कसूमल रंग का प्रमुखता से प्रयोग करेंगी।
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(Udaipur Kiran)
