लखनऊ, 5 सितंबर (Udaipur Kiran) । रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के मार्स सभागार में पत्रकार नवल कान्त सिन्हा की पुस्तक ‘गुमनाम हिन्दू राजा टिकैत राय’ का विमोचन किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर राजनाथ सिंह ने कहा कि न जाने क्यों अब तक के इतिहासकारों ने महाराजा बिजली पासी, वीरांगना ऊदा देवी और राजा टिकैत राय को नजरअंदाज किया। लखनऊ की चर्चा ज्यादातर उसके अवध की राजधानी बनने के बाद की होती है। इस शहर को बनाने में ऐसे कई गुमनाम नायक हैं जिनकी चर्चा होनी चाहिए थी पर नहीं हुई। ‘गुमनाम हिन्दू राजा टिकैत राय’ एक ऐसी किताब है जिसमें अवध राज्य की प्रगति में बड़ी भूमिका निभाने वाले राजा टिकैत राय के जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि इतिहास वह समुद्र है जिसका अनवरत मंथन वर्तमान को समझने के लिए जरूरी है। यह सही है कि ‘इतिहास को बदला नहीं जा सकता’ लेकिन इसे सम्पूर्ण सच तभी माना जाएगा, जब इतिहास समग्र रूप से लिखा गया हो। हर तथ्य बिना भेदभाव और पक्षपात के समाहित किया गया हो। उन्होंने कहा कि सन 1775 में लखनऊ अवध की राजधानी बना। उस हिसाब से इसे ढाई सौ साल पूरे होने में अभी एक साल बाकी है। यह किताब इस कालखण्ड के इतिहास के सभी महत्वपूर्ण सूत्र समेटे है।
रक्षामंत्री ने कहा कि कोई भी शहर या नगर अपनी इमारतों, सड़कों और आधुनिकता के उपकरणों से नहीं बनता। वह बनता है, वहां रहने वाले लोगों से। इसलिए उस समाज को समझने के लिए उन्हीं में से किसी एक की उंगली पकड़कर आप इतिहास से वर्तमान की यात्रा कर सकते हैं। अवध की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उपलब्धियों की सही शिनाख्त नवलकान्त सिन्हा की किताब से होती है।
लेखक ने लखनऊ के नवाबी कालखंड में ऐसे भुला दिए गए राजा टिकैट राय को इतिहास की मंजूषा से निकाल, झाड़-पोंछकर, उन्हें हमारे सामने प्रस्तुत कर लखनऊ के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक इतिहास को एक नई दृष्टि देने का प्रयास किया है। लखनऊ की संस्कृति को अब तक सिर्फ नवाबों की शानो-शौकत, आदतों और रुचियों के ज़रिए ही जाना गया। किताबें भी इसी पक्ष पर या इसके इर्द-गिर्द लिखी गयीं। लखनऊ का अतीत नवाबों के अलावा भी है। मेरे ख्याल से यह लखनऊ की एकपक्षीय पहचान थी। किसी शहर को जानने और समझने के लिए वहां की संस्कृति को जानना, समझना जरूरी होता है और संस्कृति उस वक्त के साहित्य, इमारतों, रुचियों, खान-पान, धार्मिक रीति-रिवाजों और वहां रहने वाले लोगों से बनती है।
रक्षामंत्री सिंह ने कहा कि बाराबंकी में टिकैतगंज, टिकैतनगर, रायबरेली के डलमऊ में टिकैतगंज, बदायूं में टिकैतनगर, कोलकाता में टिकैतगंज राजा टिकैत राय के ही बसाए हुए हैं। उन्हें आप आधुनिक अवध का ‘आर्किटेक्ट’ भी कह सकते हैं। राजा टिकैत राय ने अनगिनत तालाब और उसके पास मंदिरों का निर्माण कराया। उन्होंने पुरी स्थित जगन्नाथ धाम में पूजन-अर्चन के लिए कोष की स्थापना की। लखनऊ के चिनहट में भी भगवान जगन्नाथ का एक मंदिर बनवाया। लखनऊ के न जाने कितने मुहल्ले टिकैत राय के बनवाये हुए हैं। टिकैत राय अवध में इतने लोकप्रिय थे कि उनके बसाये गये सभी स्थानों के लोग उन्हें अपने शहर का मूल निवासी बताते हैं। टिकैत राय का राजस्व विभाग में एक लंबा अनुभव था। राजस्व मामलों में उनके काम को सराहा भी जाता था। अब जब कभी लखनऊ के इतिहास का जिक्र होगा तो उसमें राजा टिकैत राय का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाएगा। राजा टिकैत राय द्वारा बनवाये गए मंदिरों, इमारतों, पुलों, धर्मशालाओं, बाज़ारों, कस्बों, मोहल्लों, बागों, तालाबों की विस्तार से चर्चा है। उन्होंने सैकड़ों पक्के तालाब बनवाये। तमाम बाग़ लगवाए। उन्होंने नवाबी दौर में 108 शिवमंदिर बनवाकर हिन्दुओं को गर्व की अनुभूति कराई।
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(Udaipur Kiran) / बृजनंदन यादव