
जोधपुर, 01 मार्च (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पदस्थापन की प्रतिक्षा (एपीओ) आदेश केवल राजस्थान सेवा नियमों में उल्लेखित आकस्मिक कारणों या समान कारणों में ही पारित किया जा सकेगा। कार्मिक को एपीओ करने का कारण भी लिखित में बताना होगा जरूरी, अन्यथा आदेश विधि विरुद्ध होगा। मामले में अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने याचिकाकर्ता डॉ. दिलीप सिंह चौधरी, डॉ. मांगीलाल सोनी, लक्षमीनारायन कुम्हार सहित अन्य की ओर से पैरवी की। राजस्थान हाइकोर्ट न्यायाधीश अरुण मोंगा की एकलपीठ से राहत मिली।
भोपालगढ़, ज़िला जोधपुर के ब्लॉक मुख्य चिकित्सा अधिकारी याचिकाकर्ता डॉ दिलीप सिंह चौधरी की ओर से अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने रिट याचिका दायर कर बताया कि याचिकाकर्ता वर्ष 2015 से चिकित्सा अधिकारी पद पर नियुक्त होकर छह साल की आवश्यक संतोषजनक सेवा पूर्ण करने के बाद उसे वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी पद पर नियुक्त करते हुए बीसीएमओ, भोपालगढ़ के पद पर नियमानुसार नियुक्त किया गया। लेकिन तीन साल की सेवावधि वाले जूनियर अयोग्य चिकित्सक को उक्त वरिष्ठ पद पर नियुक्त करने की एक मात्र मंशा से याचिकाकर्ता को आदेश दिनांक 19 फ़रवरी 2024 से एपीओ कर दिया गया, जिसे रिट याचिका दायर कर चुनाैती दी गई।
सभी समान एपीओ आदेशों को चुनोती वाली रिट याचिकाओ की प्रारंभिक सुनवाई पर हाइकोर्ट की एकलपीठ ने एपीओ आदेश पर अलग अलग स्थगन आदेश जारी करते हुए राज्य सरकार को जवाब तलब किया था। राज्य सरकार की ओर से जवाब पेश कर जाहिर किया गया कि एपीओ आदेश प्रशासनिक आवश्यकता व जनहित को देखते हुए किया गया, जो राजस्थान सेवा नियम के नियम 25 क के अनुसार सही जारी किया गया है।
सभी 56 रिट याचिकाओ की अंतिम सुनवाई करने के बाद और पूर्व न्यायिक निर्णयों डॉ सुकुमार कश्यप बनाम राजस्थान राज्य और डॉ महेश कुमार पंवार बनाम राजस्थान सरकार निर्णयों से सहमत होते हुए और राजस्थान सेवा नियम 1951 के प्रावधानों का विस्तृत विवेचन करते हुए राजस्थान हाइकोर्ट एकलपीठ ने समस्त एपीओ आदेशों को निरस्त करते हुए भविष्य में एपीओ आदेश जारी करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए, जिसमे एपीओ आदेश का उद्देश्य व औचित्य, एपीओ आदेश जारी करने की शर्तें, सीमाएं व प्रतिबन्ध, तथा प्रशासनिक जवाबदेही के सम्बन्ध आवश्यक निर्देश प्रतिपादित किये गए। साथ ही राज्य के मुख्य सचिव को इस सम्बन्ध में प्रशासनिक निर्देश जारी करने को भी आदेशित किया ताकि भविष्य में एपीओ आदेश जारी करते समय इन दिशानिर्देशों की अक्षरश: पालना हो सकें। एकलपीठ ने एपीओ मामलों में यह महत्वपुर्ण व्यवस्था दी कि एपीओ आदेश को स्थानान्तरण आदेश के विकल्प के रूप में जारी नही किया जा सकता है और न ही किसी कार्मिक को दंड देने अथवा अनुशासनात्मक कार्यवाही के विकल्प के रूप में या उससे बचने के पर्याय के रूप में पारित किया जा सकता है। साथ ही एपीओ आदेश राजस्थान सेवा नियम में उल्लेखित सात परिस्थितियों अथवा उसके ही समान परिस्थितियों में ही जारी किया जा सकता है लेकिन उन परिस्थितियों को संबंधित कार्मिक को लिखित में बताना आवश्यक होगा। एपीओ आदेश 30 दिन से अधिक जारी नही रखा जा सकता है बशर्ते वित्त विभाग द्वारा वैध औचित्य के साथ इसे अनुमोदित नही किया जाए।
(Udaipur Kiran) / सतीश
