बीकानेर, 21 सितंबर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के बीकानेर परिसर के वैज्ञानिकों ने शनिवार काे विट्रिफाइड (फ्रोजन) भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से देश का पहला घोड़े का बच्चा पैदा किया है।
यह जानकारी देते हुए केंद्र प्रभागाध्यक्ष डाॅ.शरद चंद्र मेहता ने बताया कि इस बछड़े का नाम “राज-शीतल” रखा गया। बछेड़ा स्वस्थ है एवं उसका जन्म का वजन 20 किलोग्राम है। इस बछेड़े के उत्पादन के लिए घोड़ी को जमे हुए वीर्य (फ्रोजन सीमन) से गर्भित किया गया और भ्रूण को 7.5 वें दिन फ्लश कर अनुकूलित क्रायोडिवाइस का उपयोग करके विट्रिफाइ किया गया और तरल नाइट्रोजन में जमाया गया (फ्रिज किया गया)। पूरे 2 महीने के बाद भ्रूण को पिघलाया गया और गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए सिंक्रनाइज़ड सरोगेट घोड़ी में स्थानांतरित किया गया। यह उपलब्धि केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिकों डॉ. टी राव तालुड़ी एवं टीम, जिसमें डॉ. सज्जन कुमार, डॉ. आर के देदड़, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. एम कुट्टी, डॉ. एस सी मेहता, डॉ. टी के भट्टाचार्य एवं पासवान के अनुसंधान से प्राप्त हुई।
स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता
इस टीम ने आज तक मारवाड़ी घोड़े के 20 भ्रूण और जांस्कारी घोड़े के 3 भ्रूणों को सफलतापूर्वक विट्रिफाई किया है। ज्ञातव्य है कि भारत में घोड़ों की आबादी तेजी से घट रही है। 19वीं और 20वीं पशुधन गणना (2012-2019) के आंकड़ों से पता चला है कि इस अवधि के दौरान देश में घोड़ों की संख्या में 52.71 प्रतिशत की कमी आई है। इसलिए स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए तत्काल उपाय करने की आवश्यकता है एवं इसी प्रयास में यह केंद्र देश के बहुमूल्य स्वदेशी घोड़ों की नस्लों के संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहा है। वीर्य क्रायोप्रिजर्वेशन (फ्रोजन सिमन), कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण प्रत्यर्पण और भ्रूण क्रायोप्रिजर्वेशन जैसी प्रजनन तकनीकों का प्रयोग विभिन्न पशु प्रजातियों के संरक्षण में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। बहुत ही हर्ष का विषय है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के इस केंद्र ने घोड़ों में इन सभी तकनीकों को परिपूर्ण और मानकीकृत किया है।
भ्रूण प्रत्यर्पण से सफलतापूर्वक बच्चे पैदा किए हैं संस्थान ने
डाॅ. मेहता के अनुसार संस्थान ने हाल ही में मारवाड़ी और ज़ांस्कारी घोड़ों में फ्रेश एवं फ्रोजन वीर्य का उपयोग करके भ्रूण प्रत्यर्पण से सफलतापूर्वक बच्चे पैदा किए हैं। इसी क्रम में आज फ्रोजन भ्रूण के प्रत्यर्पण से स्वस्थ फिली पैदा करने में सफलता प्राप्त की है। वैज्ञानिकों की टीम को बधाई देते हुए आईसीएआर-एनआरसीई के निदेशक डॉ टीके भट्टाचार्य ने कहा कि यह तकनीक समय की मांग है क्योंकि यह तकनीक देश में घोड़ों की घटती आबादी की समस्या से निपटने में मदद करेगी और भ्रूण के क्रायोप्रिजर्वेशन की इस तकनीक से भ्रूण को उपयोग के स्थान पर आसानी से ले जाया, निर्यात और आयात किया जा सकता है और जब भी संभव हो प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने विस्तार से बताया कि घोड़ों के लिए यह देश में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है।
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(Udaipur Kiran) / राजीव