गुवाहाटी, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । शिवसागर की घटना में एक समुदाय के लोगों को राज्य के मंत्री की मौजूदगी में कुछ व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराध के लिए माफ़ी मांगने के लिए मजबूर किया गया। इस पर पैट्रियटिक पीपुल्स फ्रंट असम (पीपीएफए) ने निराशा व्यक्त की है कि कुछ लोग असम आंदोलन के दिनों से ही बाहरी लोगों (गैर-असमिया भारतीयों) के खिलाफ़ नफ़रत के उसी पुराने सिद्धांत को जारी रखे हुए हैं। पूर्वोत्तर भारत में राष्ट्रवादी नागरिकों के मंच ने यह भी कहा कि असमिया-केंद्रित आंदोलनकारी कभी भी बांग्लादेश से आए अवैध विदेशियों के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएंगे, जिन्होंने 1951 से बदलती जनसांख्यिकी के साथ धीरे-धीरे पूरी असमिया संस्कृति को चुनौती दी है।
पीपीएफए ने कहा है कि “सबसे पहले, आरोपी व्यक्तियों (जिन्होंने 13 अगस्त, 2024 को पूर्वी असम के शिवसागर के बाबूपट्टी में एक नाबालिग महिला पहलवान पर शारीरिक हमला किया) को कानून के तहत दंडित किया जाना चाहिए। एक उचित कानूनी प्रक्रिया इसी बीच शुरू हो चुकी है। लेकिन, उन आरोपित व्यक्तियों के पूरे समुदाय (मारवाड़ी समाज) को इसके लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और स्थानीय लोगों से माफ़ी मांगने के लिए किस आधार पर कहा जा सकता है? इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि असम के एक मंत्री ने अपनी मौजूदगी में इस तरह के कृत्य (जिसमें कुछ वृद्ध पुरुषों और महिलाओं को सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने के लिए घुटने टेकने पड़े) का समर्थन कैसे किया? पीपीएफए द्वारा जारी एक मीडिया बयान में कहा गया है कि अगर कल राज्य के बाहर काम करने वाले कोई या कुछ असमिया युवा अपराध करते हैं, तो क्या पूरे समुदाय को मांफी मांगनी पड़ेगी?
फोरम का तर्क है कि आंदोलनकारी, जिन्होंने पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने की मांग करते हुए हजारों निवासियों को सड़कों पर उतरने के लिए उकसाया, अब राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत आधार वर्ष के साथ असम में संशोधित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के पीछे खड़े हो सकते हैं। ऐतिहासिक असम आंदोलन के दिनों से, यह देखा गया है कि स्थानीय समुदाय के नेता राज्य में हिंदी भाषी निवासियों के बारे में आशंकित रहते हैं, लेकिन वे अवैध प्रवासियों के लिए बहुत नरम हैं। पीपीएफए के बयान में कहा गया है कि इसका उत्कृष्ट उदाहरण असम समझौता है (जो 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपस्थिति में छह साल पुराने आंदोलन के समापन पर हस्ताक्षरित हुआ था, जिसमें सैकड़ों लोगों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था), जिसके तहत हजारों पूर्वी पाकिस्तानी नागरिकों (जो 21 मार्च, 1971 तक असम में प्रवेश कर गए थे) को भारतीय के रूप में मान्यता देने और असम में रहने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश / अरविन्द राय / जितेन्द्र तिवारी