धमतरी, 15 जनवरी (Udaipur Kiran) । धमतरी जिले नगरी-सिहावा में आदिवासियों के भूमि अधिकार को लेकर सन 1952 में डा राममनोहर लोहिया ने आंदोलन शुरू किया था। 13 साल बाद आंदोलन सफल हुआ। देश में वन अधिकार अधिनियम इसी आंदोलन की देन है। वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं देने की शुरुआत 1990 के दशक में यहीं से हुई थी, इसका लाभ अब देश के लाखों आदिवासी गांवों को मिलना शुरू हुआ है। वनग्रामों का पहला घोषणा पत्र इस आंदोलन की देन है। नगरी-सिहावा क्षेत्र चारों ओर से नक्सली हिंसा से घिरा हुआ था। यह क्षेत्र अहिंसा का टापू भी है। यहां के आदिवासियों ने अहिंसक संघर्ष के जरिए जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया है, उसे देश के पाठ्यक्रमों में स्थान मिलना चाहिए।
नगरी विकासखंड के ग्राम पंचायत दुगली अंतर्गत ग्राम कौहाबाहरा में पिछले दिनों आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए यह बातें लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक व संरक्षक रघु ठाकुर ने कही।
लोहिया जिस उमरादेहान से आजादी के बाद नगरी-सिहावा आंदोलन की शुरुआत की थी, सभा से पहले ठाकुर वहां पहुंचकर स्मृति-फलक का विमोचन भी किया, जिसमें इस संघर्ष से जुड़े उमरादेहान के स्मृति- फलक में सुखराम नागे, बिसाहिन बाई, समरीन बाई, रामप्रसाद नेताम, रमेश वल्यानी व एचवी नारवानी अधिवक्ता आदि के नाम का विशेष उल्लेख किया गया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कौहाबाहरा के सरपंच व लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष शिव नेताम ने की। रघु ठाकुर ने कहा कि भारत में दो ही आंदोलन सबसे लंबे चले। एक सीमांत गांधी का, दूसरा डा लोहिया का नगरी- सिहावा आंदोलन।
उल्लेखनीय है कि डा लोहिया के बाद सन् 1977 से नगरी सिहावा के आंदोलन की बागडोर रघु ठाकुर ने सम्हाली जिसके तहत अठारह में से 13 गांवों के आदिवासियों को तो 1990 के दशक में भूमि का अधिकार मिल गया था लेकिन पांच गांवों का प्रकरण उलझ गया था जिन्हें अब जाकर सफलता मिली है। अपने अधिकारों के लिए इस अंचल की पांच पीढ़ियों ने निरंतर संघर्ष किया, रायपुर तक 120 किमी की पदयात्रा की, रघु जी ने अनशन किया, आदिवासियों ने जेल भरी, जार्ज फर्नांडीज व शरद यादव आदि नेताओं ने सांसद रहते हुए समर्थन में गिरफ्तारी दी।
रघु ठाकुर ने कहा कि, इस आंदोलन में पत्रकार मधुकर खेर, गोविन्दलाल वोरा, तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा व पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का समर्थन व सहयोग रहा। सबके प्रति इस आंदोलन से जुड़े लोग कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। लोहियावादियों का सबके प्रति सकारात्मक भाव रहता है, किसी से शत्रुता नहीं होती।
रघु ठाकुर ने कहा कि नगरी- सिहावा आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों के मन में अधिकारों को हासिल करने की भूख जगाई है, चाहे वह चिकित्सा का मौलिक अधिकार हो या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का। डा लोहिया कहते थे कि सड़कें सूनी हो जाएंगी तो संसद आवारा हो जाएगी। इसीलिए यहां के आदिवासी अपने आगामी कार्यक्रम के तहत फसल कटने के बाद अपने अधिकारों के लिए फिर राजधानी की ओर कूच करेंगे। 18 गांवों के कब्जे वाली जमीन की जांच हुई, 1985 से पहले के कब्जों को पट्टे मिलना तय हुआ, जो पात्र नहीं थे उन्हें खेती की जमीन जीवनयापन के लिए मिली। देश के स्तर से जो वन भूमि अधिकार अधिनियम पारित हुआ है उसका मूल भी सिहावा के आदिवासियों का जमीन की मांग का ही आंदोलन है।
यह दुगली गांव अनेक बड़ी घटनाओं की जन्म भूमि है। यहीं 1991में हमने वन ग्राम वासियों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें वन ग्राम घोषणा पत्र जारी किया था। इस अवसर पर पार्टी के महासचिव श्याम मनोहर सिंह, पत्रकार जयन्त सिंह तोमर उपस्थित थे।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा