कानपुर, 11 दिसंबर (Udaipur Kiran) । पहाड़ों पर पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो गया है और बर्फबारी भी हो रही है, जिससे पछुआ हवाओं ने उत्तर प्रदेश के मौसम में बदलाव ला दिया है। दिन और रात में सर्द भरी हवाएं चलने लगी हैं और आगामी दिनों पाला भी पड़ने वाला है। ऐसे में बागवानी फसलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना लाजिमी है। इसके लिए किसानों को चाहिये कि पहले से सर्दी से बागवानी फसलों के बचाव के लिए तैयारीं कर लें। बागवानी फसलों के बचाव के लिए जरुरी है कि दिन में हल्की सिंचाई करें और धुआं के जरिये भी पाले का प्रभाव कम किया जा सकता है। इसके अलावा वायु प्रतिरोधक पट्टियां भी बाग में लगा दें। यह बातें बुधवार को सीएसए के उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विवेक कुमार त्रिपाठी ने कही।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के उद्यान विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विवेक कुमार त्रिपाठी ने बताया कि बागबान भाइयों को अत्यधिक कम या अधिक तापमान, ओला और असामयिक वर्षा जैसी विभिन्न प्रतिकूल अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जिसमें तापमान में गिरावट या अधिकता होने पर पौधों का बचाव अति आवश्यक है। उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में दिसंबर जनवरी में जब तापमान अत्यधिक गिर जाता है और पाले जैसी स्थिति हो जाती है, जिससे पौधों की पत्तियां, पतली टहनिया/शाखाएं, फूल और विकसित हो रहे फल मर जाते हैं। इससे पपीता, आम, लीची, नींबू समूह के फल, अमरुद आदि में अधिक हानि होती है। नवरोपित पौधों पर भी कम तापमान एवं पाले का अधिक प्रभाव दिखाई देता है, जिससे पौधे मर भी जाते हैं। तापक्रम की कमी से शाखा या तने का केंद्रीय भाग जिसमें कैंबियम होता हैं, मर जाता है, जिसको ब्लैक हार्ट कहते हैं।
धुआं के लिए कर लें व्यवस्था
उन्होंने बताया कि अत्यधिक तापमान कम होने से भूमि के पास जड़ों-तने के संधि स्थल की छाल चटक जाती है जिससे भी कोशिकाएं फट कर पौधे को नुकसान पहुंचाती हैं। अधिक पाला पड़ने पर तने या शाखा की छाल चटक जाती है। यह सब बिकार जब तापमान कम होता है या पाला पड़ता है तो पौधे की कोशिकाओं में जल का जमाव हो जाने के कारण, कोशिकाओं का आयतन बढ़ जाने से कोशिका भित्तियां फट जाने के कारण से होता है, जिसके फलस्वरूप पौधा मर जाता है। किसान भाइयों को इन सबसे बचाव के लिए जो अत्यधिक स्थाई उपाय हैं वह पाले को सहन सील पौधे जिसमें किन्नू, लोकाट, अमरुद, मैंडरिन और मीठी नारंगी आदि का रोपण है। पाला पड़ने के संभावित समय से एक-दो दिन पूर्व हल्की सिंचाई करना भी लाभदायक रहता है। बगीचे में लकड़ियां या फूस एकत्रित कर उस पर मूवीऑल डालकर उसको जलाकर हल्का धुआं करना चाहिए। नए पौधों को फूंस की टट्टियों या टाट से पूर्व दिशा को खुला छोड़ कर ढक देते हैं। बगीचा रोपड़ से पूर्व उत्तर और पश्चिम दिशा में वायु प्रतिरोधक पट्टियां लगाने से सर्दी में कम और गर्मी में अधिक तापमान से बगीचे के पौधों की सुरक्षा रहती है। इस प्रकार से उपयुक्त विभिन्न विधियों को अपनाते हुए बागवान भाई अपने नव रोपित बगीचा और फल दे रहे फलों के पौधों को सर्दी में बचाकर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह