
रांची, 22 अप्रैल (Udaipur Kiran) ।
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ओर से आदिवासी समुदायों का स्वास्थ्य और ज़मीन पर काम करने के अनुभव एवं सीख नामक कार्यक्रम की शुरुआत मंगलवार को की गयी। यह कार्यक्रम दो दिनों तक चलेगा।
पिछले कुछ दशकों में आदिवासियों के स्वास्थ्य और सेहत में काफ़ी सुधार देखा गया है, लेकिन फिर भी दूसरे समुदायों के मुकाबले आदिवासी समुदायों का स्वास्थ्य कई मानकों पर बहुत पीछे है। पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य की स्थिति बेहद नाजुक है। इन लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं भी सीमित मात्रा में ही पहुंच पाई हैं। साथ ही आदिवासी समुदायों में टीकाकरण, प्रसव की सुविधाएं और उसके बाद की देखभाल जैसी मूलभूत सेवाएं भी मुश्किल से पहुंच रही हैं। इसके अलावा, आदिवासियों में एनीमिया, बच्चों में कुपोषण के साथ-साथ कई गैर-संचारी बीमारियां अन्य समुदायों से कहीं ज़्यादा हैं। कार्यक्रम में ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों ने अपने अनुभवों और सीखे गए महत्त्वपूर्ण मुद्दों को साझा किया। कार्यक्रम में आदिवासी समुदायों की स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं, चुनौतियों और उनके समाधान पर भी चर्चा की गई। कार्यक्रम में देश भर से लगभग कई प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य पर काम करने वाले नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों, इन समुदायों का इलाज करने वाले अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के सदस्य समेत अन्य लोग भी शामिल हुए। अज़ीम प्रेमजी फ़ाउण्डेशन सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र के क्षेत्र में काम करने और सबसे कमज़ोर तबकों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर काम करना चाहता है।
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(Udaipur Kiran) / Vinod Pathak
