लखनऊ, 19 नवम्बर (Udaipur Kiran) । हिमालय, जिसे एशिया का जलस्तंभ कहा जाता है, न केवल भौगोलिक संरचना बल्कि महासागरों को भरने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग द्वारा एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया।
प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर पीटर क्लिफ्ट ने प्राकृतिक और मानवजनित प्रक्रियाओं के बीच प्रतिस्पर्धा: एशियाई समुद्री सीमांतों में होलोसीन अवसाद प्रवाह को नियंत्रित करना विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने हिमालय को एशियाई समुद्री सीमांतों में अवसादों का प्रमुख स्रोत बताते हुए विवर्तनिकी और मानवजनित जलवायु परिवर्तनों की भूमिका को समझाया। उन्होंने प्राचीन जलवायु अध्ययन (पैलियोक्लाइमेटोलॉजी) पर भी चर्चा की और बताया कि अवसाद रिकॉर्ड किस प्रकार ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तनों के अभिलेख के रूप में कार्य करते हैं।
प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह, भूविज्ञान विभागाध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने हिमालय को भूवैज्ञानिक ऊर्जा का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि हिमालय न केवल समुद्र सीमांत में अवसादन को प्रभावित करता है, बल्कि क्षेत्रीय जलवायु और जल प्रणाली को भी आकार देता है। उन्होंने प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानव प्रभाव के बीच परस्पर संबंध को समझने के लिए अवसाद प्रवाह और प्राचीन जलवायु का समग्र अध्ययन करने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रोफेसर महेश ठक्कर, निदेशक, बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान, लखनऊ, और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून ने कच्छ क्षेत्र में अवसादों को संरक्षित करने में अनुसंधान की कमी को उजागर किया। उन्होंने कहा कि ये क्षेत्र पृथ्वी के पर्यावरणीय इतिहास के महत्वपूर्ण प्रमाण रखते हैं और यहां के अवसाद अध्ययन में भविष्य के शोधकर्ताओं के लिए महान संभावनाएं हैं। विशेष रूप से क्वाटरनरी पैलियोक्लाइमेटिक अध्ययन में। प्रोफेसर एम.एम. वर्मा, डीन रिसर्च, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने मानव, पृथ्वी और ब्रह्मांड के विकास पर विचार साझा किए।
रजिंदर कुमार, अतिरिक्त महानिदेशक एवं प्रमुख, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, उत्तरी क्षेत्र के योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिमालयी भूविज्ञान और अवसादन प्रक्रिया को समझने के लिए चल रही पहलों के साथ-साथ उनके प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन में व्यावहारिक उपयोग पर जोर दिया।
कार्यक्रम में बीरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूवैज्ञानिकों, शोधार्थियों, पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो और भूविज्ञान विभाग के शिक्षकगण की उपस्थिति ने इस चर्चा को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया। यह व्याख्यान लखनऊ विश्वविद्यालय के 104वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया, जो वैश्विक भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर शोध को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
(Udaipur Kiran) / उपेन्द्र नाथ राय