
-हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों के कथ्य विश्लेषण पर संगोष्ठी
प्रयागराज, 08 मई (Udaipur Kiran) । हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में गुरुवार को ‘हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों का कथ्य विश्लेषण’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रो. सुरेन्द्र प्रताप (पूर्व विभागाध्यक्ष हिन्दी, काशी विद्यापीठ, वाराणसी) ने कहा कि हिन्दी कहानी का विकास यूरोप की तुलना में विलम्ब से हुआ। कहानी का विकास 19वीं सदी से शुरू होता है और अब कहानी एक महत्वपूर्ण विद्या के रूप में छाई हुई है। विगत पांच दशकों में कहानियों में काफी प्रयोग हुए हैं।
प्रो. ओमप्रकाश सिंह (पूर्व आचार्य हिन्दी, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली) ने कहा कि हिन्दी कहानी का जन्म 20वीं शताब्दी में हुआ। वैसे कहानी कहना और सुनना तो हमारे रगों में बसा हुआ है। 20वीं शताब्दी कहानी लेखन के विकास की शताब्दी है। राष्ट्रवाद की परिकल्पना ने साहित्य के अनेक रूपों को जन्म दिया। ऐसे बच्चों की पड़ताल जरूरी है। कहानी और राष्ट्रवाद एक दूसरे के पूरक हैं, इसे समझ कर ही हम आगे बढ़ पाएंगे और एक सही रास्ते की तलाश कर पाएंगे।
प्रो शिव प्रसाद शुक्ल (आचार्य हिन्दी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने ‘हिन्दी की प्रारम्भिक कहानियों का कथ्य विश्लेषण’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय कथा या कहानी साहित्य का इतिहास काफी पुराना है। पाश्चात्य साहित्य तर्क विज्ञान के आधार पर 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था। कुछ आलोचक कहानी को पाश्चात्य चश्मे से देखते है। भारतीय या हिन्दी कहानी को आलोचनात्मक अनुशीलन करने पर परिलक्षित होता है कि पाश्चात्य कहानियों में तर्क हो सकता है, आस्था एवं विश्वास नहीं। हिन्दी या भारतीय भाषाओं में लिखी कहानियों की तासीर एवं कहानी स्थानीयता से जुड़ा है।
प्रो. रामपाल गंगवार (आचार्य हिन्दी, डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ) ने हिन्दी की आरम्भिक कहानियों के कथ्य का विश्लेषण करते हुए बताया कि हिन्दी की कहानियों में परम्परागत कथा और उसके शिल्प को तोड़ने की छटपटाहट है। हिन्दी की आरम्भिक कहानियों में आजादी और पुनर्जागरण के प्रभाव को देखा जा सकता है।
संगोष्ठी का संचालन करते हुए डॉ. अरुण कुमार मिश्र ने कहा कि हिन्दी कहानी मानवीय हृदय का परिष्कार है। हमारी संवेदनाएं और अनुभूतियां कहानी के माध्यम से ही व्यक्त होती हैं। मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-साथ कहानी विधा का भी विकास हुआ है। जैसे-जैसे हमारे जीवन में परिवर्तन होता है वैसे ही कहानी में भी परिवर्तन होता रहा है। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के प्रशासनिक अधिकारी गोपालजी पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्धानों में रविनंदन सिंह, डॉ.अनिल कुमार सिंह, शाम्भवी, डॉ.पीयूष मिश्र ‘पीयूष’, पारुल सिंह राठौर, रंजना गुप्ता, अरविन्द कुमार उपाध्याय सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य आदि उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
