जम्मू, 22 सितंबर हि स। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता एंव मीडिया सेंटर के प्रभारी अरुण गुप्ता ने कहा हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर की तस्वीर को इतना खूबसूरत और शांतिपूर्ण बना दिया है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस बौखलाकर भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) पर दिन-रात आरोप लगाने में व्यस्त हैं, लेकिन अब वे दिन हो या रात, लंबे समय तक अभियान चला सकते हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले कश्मीर के ज़ेडीबल विधानसभा क्षेत्र में नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला अपनी पार्टी के उम्मीदवार तनवीर सादिक के साथ खुले ऑटो रिक्शा में बैठकर श्रीनगर के पुराने शहर की गलियों में स्वतंत्र रूप से घूम रहे थे। ये वे इलाके थे जो राजनेताओं के लिए निषिद्ध माने जाते थे और आतंकवाद के गढ़ माने जाते थे।
डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला अपनी पार्टी के लिए समर्थन जुटा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर स्थानीय लोगों के लिए कुछ न करने का आरोप लगा रहे थे।
उन्होंने कहा कि अगर हम बैठकर सोचें और गहराई से विश्लेषण करें, तो हमें यह महसूस होगा कि 2024 के विधानसभा चुनावों में कश्मीर में पहली बार बड़े नेता डोर टू डोर अभियान चला रहे हैं जो 1987 के बाद से नहीं देखा गया था। यह वह समय था जब फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे और उनकी नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार थी, जब 1989 के अंत और 1990 की शुरुआत में आतंकवाद का उदय हुआ। यह उनकी सरकार की भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और जबरदस्ती थी जिसने आतंकवाद के लिए उपजाऊ भूमि तैयार की।
अरुण गुप्ता ने कहा कि हमें इस डोर टू डोर अभियान और उम्मीदवारों के साथ-साथ आम लोगों में भय की अनुपस्थिति का भी विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा कैसे संभव हुआ और इस सुखद बदलाव का श्रेय किसे जाता है? जब हम हाल के अतीत पर नजर डालते हैं तो हमें यह महसूस होता है कि ये सभी सकारात्मक बदलाव 5 अगस्त 2019 के बाद से हुए हैं जब अनुच्छेद 35-ए और 370 को निरस्त किया गया था। उन्होंने बताया कि 1987 के बाद जब फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे, उनके कार्यकाल के दौरान होने वाले हर चुनाव में, चाहे वह लोकसभा हो, विधानसभा हो, या पंचायत और स्थानीय संस्थाओं के चुनाव हों, अत्यधिक हिंसा देखी गई। विभिन्न दलों के उम्मीदवारों की हत्याएं और आम लोगों की मौतें आम थीं।
अरुण गुप्ता ने कहा कि पूरे कश्मीर में पथराव की घटनाएं और हड़तालें देखी जाती थीं जिसके परिणामस्वरूप हर क्षेत्र में बार-बार बाधाएं उत्पन्न होती थीं। इन हड़तालों के कारण शैक्षणिक संस्थान बंद हो गए, व्यवसाय प्रभावित हुए, पर्यटन और उद्योग को भी नुकसान हुआ। उन्होंने आगे कहा कि इन बार-बार की बंदिशों ने अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया और एक भय का माहौल पैदा किया, जहां कोई निवेशक जम्मू-कश्मीर में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं था।
1997 में फारूक अब्दुल्ला ने पूरे भारत और यहां तक कि विदेशों से निवेश की मांग की लेकिन उन्हें सख्ती से खारिज कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि संभावित निवेशकों से कहा गया कि वे जम्मू-कश्मीर में करोड़ों का निवेश करें, लेकिन वे अपने नाम पर एक इंच भी जमीन नहीं खरीद सकते। उन्हें बताया गया कि वे जम्मू-कश्मीर के हजारों लोगों के लिए नौकरियां पैदा करें, लेकिन वे यहां अपने घर नहीं बना सकते और हमेशा किरायेदार के रूप में रहना होगा। इससे कई संभावित निवेशक हतोत्साहित हो गए, जिन्होंने कहा कि यदि उनसे जम्मू-कश्मीर में निवेश करने का अनुरोध किया जा रहा है तो कम से कम उन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए आवासीय उद्देश्यों के लिए छोटे भूखंडों की अनुमति दी जानी चाहिए। चूंकि अनुच्छेद 35-ए और 370 लागू थे, इसलिए ‘बाहर वालों’ (जैसा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस उन्हें कहती थी, अर्थात अन्य राज्यों के भारतीय नागरिक) को आवासीय उद्देश्यों के लिए भूमि देने की कोई संभावना नहीं थी और संभावित निवेशकों को वापस भेजना पड़ा।
उन्होंने कहा कि आज हजारों करोड़ की निवेश योजनाएं प्राप्त हुई हैं और पूरे जम्मू-कश्मीर में कई औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किए जा रहे हैं।
अरुण गुप्ता ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को उन अनुच्छेदों की बहाली के व्यर्थ एजेंडे से पीछे हटना चाहिए जो हमेशा के लिए दफन हो चुके हैं।
(Udaipur Kiran) / राधा पंडिता