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राष्ट्रपति ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य को प्रदान किया ज्ञानपीठ पुरस्कार

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु समारोह को संबोधित करते हुए

नई दिल्ली, 16 मई (Udaipur Kiran) । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शुक्रवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने श्रेष्ठता के प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने पर बधाई दी और कहा कि आप अनेक प्रतिभाओं से सम्पन्न हैं तथा आपके योगदान बहुआयामी हैं। आपने शारीरिक दृष्टि से बाधित होने के बावजूद अपनी अंतर्दृष्टि बल्कि दिव्यदृष्टि से साहित्य और समाज की असाधारण सेवा की है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय साहित्य की सभी भाषाओं में भारतीय मिट्टी की सुगंध स्पष्ट रूप से मौजूद है। यह ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य की इसी महत्ता को दर्शाता है। भारतीय ज्ञानपीठ के इन दो शब्दों में भारत के लोगों के ज्ञान और परंपराओं की मूल एकता व्यक्त होती है। यह एकता भारत के लोगों की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक एकता की अभिव्यक्ति है। वाल्मीकि, व्यास और कालिदास से लेकर रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान कवियों की रचनाएं एक जीवंत भारत की धड़कन को दर्शाती हैं। यह धड़कन भारतीयता का सार है और हमारी भारतीय चेतना की नींव है।

राष्ट्रपति ने ज्ञानपीठ पुरस्कार के चयनकर्ताओं और प्रशासकों की सराहना करते हुए कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार के चयनकर्ताओं ने भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ लेखकों का चयन करके इस पुरस्कार की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। मैं सभी पूर्व और वर्तमान चयनकर्ताओं, चयन समिति के अध्यक्षों और भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के प्रशासकों की सराहना करती हूं।

साहित्य समाज को जोड़ता भी और जगाता भी है। 19वीं सदी के सामाजिक जागरण से लेकर बीसवीं सदी में हमारे स्वाधीनता संग्राम से जन-जन को जोड़ने में कवियों और रचनाकारों ने महानायकों की भूमिका निभाई है। वर्ष 1965 से विभिन्न भारतीय भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्यकारों को पुरस्कृत करके, ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ ने, साहित्य-सेवा के माध्यम से देश की सेवा की है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महिला रचनाकारों में आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, कुर्रतुल-ऐन-हैदर, महाश्वेता देवी, इंदिरा गोस्वामी और कृष्णा सोबती जैसी असाधारण महिलाएं शामिल हैं। इन महिला रचनाकारों ने भारतीय परंपरा और समाज को विशेष संवेदना के साथ देखा है, अनुभव किया है तथा हमारे साहित्य को समृद्ध किया है। मैं चाहूंगी कि इन श्रेष्ठ महिला रचनाकारों से प्रेरणा लेकर हमारी बहनें और बेटियां साहित्य सृजन में बढ़-चढ़कर भागीदारी करें और हमारी सामाजिक सोच को और अधिक संवेदनशील बनाएं।

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(Udaipur Kiran) / सुशील कुमार

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