Uttar Pradesh

काशी के लक्खा मेले में शुमार नाग नथैया लीला की तैयारी पूरी, मंगलवार शाम को लीला

फाइल फोटो
Preparations for Nag Nathaiya Leela,

—नाग नथैया लीला नदियों को प्रदूषण से बचाने का देती है संदेश

वाराणसी, 04 नवम्बर (Udaipur Kiran) । धर्म नगरी काशी के लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट का प्रसिद्ध नाग—नथैया मेला 05 नवम्बर मंगलवार को अपरान्ह तीन बजे से अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास और श्री संकटमोचन मंदिर के महन्त प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र की देखरेख में होगा ।

सोमवार को मेले की तैयारियों को अन्तिम रूप दिया गया। पुलिस अफसरों ने भी मेले की व्यवस्था देखने के बाद सुरक्षा का खाका तैयार किया। बताते चलें गंगा में जल प्रदूषण रोकने का संदेश देने के लिए इस मेले का आयोजन होता है। मेला के संयोजक प्रो.विश्वम्भर नाथ मिश्र के अनुसार तुलसीघाट पर मेले की शुरूआत अपरान्ह तीन बजे से होगी। भगवान श्रीकृष्ण और उनके बाल सखा बने पात्र गंगा नदी प्रतीक रूप से यमुना नदी के किनारे कंचुक गेंद खेलते है । खेलते—खेलते गेंद यमुना में चली जाती है। यमुना में कालियानाग के रहने के कारण कोई नदी के किनारे भी नही जाना चाहता । बाल सखाओं के दबाब पर कान्हा शाम 4 बजकर चालीस मिनट पर कदम्ब की डाल के उपर चढ़कर यमुना में कूद जाते है। काफी देर तक कान्हा जब नदी से बाहर नही निकलते तो बाल सखा अकुलाने लगते है। इसके कुछ समय बाद भगवान श्रीकृष्ण कालियानाग का मान मर्दन कर उसके फन पर नृत्य मुद्रा में वेणुवादन कर प्रकट होते है । पूरा गंगा तट और वहां उपस्थित लाखों श्रद्धालु, देशी विदेशी पर्यटक भगवान श्रीकृष्ण की जय, हर—हर महादेव का जयघोष करते है। इसी दौरान नटवर नागर की महाआरती देख श्रद्धालु निहाल हो जाते है । कृष्ण लीला का यही समापन होता हैंं।

—क्यों जुटती है मेला देखने के लिए लाखों की भीड़

काशी के ऐतिहासिक इस मेले की तुलसीघाट पर शुरूआत गोस्वामी तुलसीदास ने की थी । मेले में परम्परानुसार काशी नरेश के उत्तराधिकारी महाराज कुवंर अनन्त नारायण सिंह, उनके बेटे रामनगर दुर्ग से गंगा में बड़े स्टीमर के काफिले में तुलसीघाट पहुंचते है । घाट पर स्टीमर में सवार होकर ही महाराज लीला की प्रदक्षिणा करते है। इसके तुरन्त बाद अस्थाई कदम्ब की डाल से भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप यमुना में कूदते है। नदी में पहले से ही प्रशिक्षित गोताखोर भगवान के स्वरूप को गोद में लेकर गंगा में बने कालियानाग के फन पर विराजमान कराते है । काशी में मान्यता है कि कालियानाग के फन पर वेणुवादन करते भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप में कुछ क्षण के लिए अंश आ जाता है। पूरे लीला के दौरान भगवान भोले की नगरी गोकुल बन जाती है। इस लीला की खास बात है कि कदम्ब की डाल हर वर्ष श्रीसंकट मोचन मंदिर में स्थित जंगल-क्षेत्र से काटकर लाई जाती है। चूंकि पेड़ हरा काटा जाता है। इसलिए उसके बदले में हर वर्ष कदम्ब के पौधे को मंदिर के जंगल में लगाया जाता है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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