
कानपुर, 23 अप्रैल (Udaipur Kiran) । प्राकृत भाषा भारत महाद्वीप की प्राचीन भाषा है। इसमें सदाचार, अहिंसा के नैतिक मूल्यों का भण्डार है। भगवान महावीर एवं भगवान बुद्ध ने शान्ति एवं जन-कल्याण के लिए प्राकृत (पाली) भाषा में अपने उपदेश दिए। इन प्राच्य विद्याओं का संरक्षण एवं संवर्धन गुरुकुल-शिक्षण-प्रणाली द्वारा किया जा सकता है। इस प्रणाली द्वारा छात्र रोज़गार एवं अपने बहुमुखी विकास के लिए अध्ययन कर सकते हैं। यह बातें बुधवार को सीएसजेएमयू कानपुर में डॉ. दीपक कोइराला ने कही।
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में स्कूल आफ़ लैंग्वेजेज में स्थापित आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ के तत्वाधान में विश्वविद्यालय में प्राकृत भाषा का पुर्नजीवन,संवर्धन एवं शोध विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मंगलाचरण शोधपीठ विद्यार्थी डॉ. अंशु जैन, शैली जैन व रेनू जैन ने किया। विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी की अध्यक्षता में कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मुख्य अतिथि एवं प्रधान वक्ता साबरमती गुरुकुल अहमदाबाद से आए डॉ. दीपक कोइराला रहे। यह जानकारी विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने दी।
प्रति कुलपति ने कहा कि जैन धर्म वैदिक सनातन धर्म का अभिन्न अंग है, दोनों धर्म एक दूसरे के पूरक हैं। प्राकृत भाषा संस्कृत की तरह प्राचीन भाषा है और इसका साहित्य बहुत समृद्ध है। वर्तमान समय में इसमें शोध की बहुत संभावनाएं हैं। निश्चित रूप से हमारा विश्वविद्यालय आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ के माध्यम से प्राकृत भाषा के पुर्नजीवन एवं उसके संवर्धन में अपना सहयोग करेगा। प्रति कुलपति ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में जैन आगम संवर्धन के लिए एक प्रथक पुस्तकालय का शुभारम्भ होना चाहिए।
स्वागत वक्तव्य में स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ के निदेशक डॉ. सर्वेश मणि त्रिपाठी ने कहा कि जैन शोध पीठ निरंतर प्राकृत भाषा के उद्यम एवं संरक्षण के लिए प्रगतिशील है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रभात गौरव मिश्रा द्वारा किया गया और सुमित कुमार जैन ‘शास्त्री’ ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में शोध न्यास ट्रस्टी सी.ए. अरविंद कुमार जैन सहित स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ के सभी अध्यापक एवं छात्र उपस्थित रहे।
(Udaipur Kiran) / मो0 महमूद
