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लखनऊ, 08 फरवरी (Udaipur Kiran) । पावर कारपोरेशन ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल के 42 जनपदों का निजीकरण करने के क्षेत्र में ट्रांजेक्शन एडवाइजर की सेवा शर्तों में कई बदलाव करते हुए ट्रेंडर प्रक्रिया को एक मार्च तक बढ़ा दिया है। इसके लिए सात कंसलटेंट कम्पनियों द्वारा अलग-अलग सेवा शर्तों में बदलाव की मांग उठाई गई थी। उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इसका विरोध किया है।
पावर कॉरपोरेशन ने प्री बिड कॉन्फ्रेंस में लिए गए निर्णय के आधार पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एनर्जी ट्रांसपोर्ट को पूरे मामले को भेजा था। अंततः एनर्जी टास्क फोर्स ने अनेक सेवा शर्तों में बड़े पैमाने पर शिथिलता दे दी है। सबसे चौंकाने वाला मामला यह है कि न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर जो 500 करोड़ था। उसे 200 करोड़ कर दिया गया और कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर को लगभग शिथिल कर दिया गया है। अब उसके रहने, न रहने का कोई मतलब नहीं है और सभी शिथिलता देते हुए ट्रांजैक्शन एडवाइजर का जो टेंडर 18 फरवरी तक आगे बढ़ाया गया था। अब उसे एक मार्च तक आगे बढ़ाते हुए तकनीकी बिड तीन मार्च को खोलने हेतु आदेश जारी किए गए हैं और टेंडर पोर्टल पर इसकी सूचना को सार्वजनिक कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि पावर कारपोरेशन के प्रस्ताव पर एनर्जी टास्क फोर्स द्वारा कॉन्फिलट आफ इंटरेस्ट (हितों का टकराव) के सबसे महत्वपूर्ण पैरामीटर में जो शिथिलता प्रदान की गई है। वह पूरी तरह केंद्रीय सतर्कता आयोग( सीबीसी) की गाइडलाइन अपॉइंटमेंट का कंसलटेंट के लिए जारी विस्तृत कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के प्रावधान का खुला उल्लंघन है। इसे उपभोक्ता परिषद कभी भी सफल नहीं होने देगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री को तत्काल इस गंभीर मामले की उच्च स्तरीय जांच करने का आदेश देना चाहिए कि किसके दबाव में केंद्रीय सतर्कता आयोग की गाइडलाइन का उल्लंघन करते हुए कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट मामले में शिथिलता प्रदान की गई। उपभोक्ता परिषद चुप नहीं बैठने वाला है। जरूरत पड़ने पर इस मामले की शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग को भी करेगा और साथ ही विद्युत नियामक आयत के सामने भी इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाएगा।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि पहले पावर कारपोरेशन के प्रस्ताव पर एनर्जी टास्क फोर्स ने कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मजबूत प्रावधान किया ऐसे में उसमें शिथिलता और बदलाव की क्या जरूरत पड़ गई। सभी को पता है कंसल्टेंट के मामले में हितों के टकराव का मामला सबसे गंभीर होता है, क्योंकि ज्यादातर कंसलटेंट कंपनियां निजी घरानो के साथ साठ-गांठ रखती हैं और उसी के आधार पर आगे घालमेल करवाती है।
(Udaipur Kiran) / उपेन्द्र नाथ राय
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