
जबलपुर, 14 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । फर्जी वसीयत बनाकर जमीन हड़पने के मामले में फरार पटवारी जागेन्द्र पीपरे ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया। शासन की ओर से की जा रही कार्यवाही के संदर्भ में फरार ईनामी पटवारी को प्रस्तुत होने के लिए दो बार आम सूचना का प्रकाशन भी किया जा चुका था। पटवारी जागेन्द्र पीपरे की ओर से यह पक्ष रखा गया है कि,उन्होंने नीयम विरूद्ध कोई कार्य नहीं किया है एवं इस प्रकरण में उन्हें बेवजह संलिप्त किया गया है। पटवारी पर पाँच हजार का इनाम भी घोषित किया गया था। तहसीलदार पटवारी सहित सात लोगों पर मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में तहसील हरिसिंह धुर्वे को पूर्व में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। जिसके बाद से ही पटवारी फरार था।
पटवारी ने पुलिस को पूछताछ में इस मामले से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया। पुलिस को पता चला है कि किस तरह से करोड़ों की जमीन को हड़पने के लिए योजना बनाई गई थी। पटवारी खुद को सिर्फ मोहरा बता रहा है। जबकि उसके अनुसार इस मामले में अन्य कर्मचारी एवं अधिकारी शामिल हैं। पुलिस ने पूछताछ के लिए पटवारी को एक दिन की रिमांड पर लिया। जिसकी रिमांड खत्म हो जाने के बाद आज उसे कोर्ट में पेश किया गया है। पुलिस और भी पूछताछ के लिए आज फिर कोर्ट से पटवारी की रिमांड माँग सकती है। कलेक्टर दीपक सक्सेना के निर्देश पर यह एफआईआर अनुभागीय राजस्व अधिकारी शिवाली सिंह द्वारा विजय नगर थाने में दर्ज कराई गई थी। इस प्रकरण में तहसीलदार हरिसिंह धुर्वे को गिरफ्तार कर लिया गया था।
उल्लेखनीय है कि ग्राम रैगवां की 1.1 हेक्टेयर भूमि पर करीब 50 वर्षों से शिवचरण पांडे का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज था। तहसीलदार हरिसिंह धुर्वे ने अवैध रूप से नामांतरण करते हुए शिवचरण पांडे का नाम हटा दिया। यह नामांतरण एक अपंजीकृत वसीयत के आधार पर किया गया,जो कथित रूप से 50 साल पुरानी थी और महावीर प्रसाद द्वारा निष्पादित की गई थी। जाँच में यह पाया गया कि महावीर प्रसाद का नाम भूमि के राजस्व अभिलेखों में कभी दर्ज नहीं था, फिर भी उनकी कथित वसीयत के आधार पर यह अवैध नामांतरण किया गया। खोजबीन में पाया गया कि वसीयत के गवाहों और दस्तावेजों में भी कई अनियमितताएँ थीं। गवाहों के शपथ पत्र नोटराईज्ड थे,लेकिन उनके हस्ताक्षर अदालत में प्रस्तुत दस्तावेजों से मेल नहीं खाते थे। इसके अलावा,पटवारी जागेंद्र पिपरे की रिपोर्ट को भी पक्षपाती और गलत पाया गया। बहरहाल पटवारी से पूछताछ में कई राज उजागर हो सकते हैं।
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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक
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