जगदलपुर, 16 सितंबर (Udaipur Kiran) । सनातन हिंदू धर्म में पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले, इसलिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। घर में सुख-समृद्धि आती है। यह 16 दिन तक चलता है, पितृपक्ष पर लोग पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान व श्राद्ध करते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा।
पंडित शाुभांशु पढ़ी ने बताया कि हमारे पूर्वजों को श्रृद्धांजलि देने के लिए अश्विन माह में पितृ पक्ष के सोलह दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इस दौरान तर्पण, पिंडदान किया जाता है। उन्होंने बताया कि पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा से हो रही है, लेकिन इस दिन श्राद्ध नहीं किया जाएगा। पूर्णिमा पर ऋषियों का तर्पण करने का विधान है। पूर्णिमा तिथि के श्राद्ध को ऋषि तर्पण भी कहा जाता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के कार्य प्रतिपदा तिथि से हाेगे। पितृपक्ष १६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें सनातन हिंदू अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिंडदान करते हैं। इसे ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ आदि नामों से भी जाना जाता है।
(Udaipur Kiran) / राकेश पांडे