Madhya Pradesh

आगरमालवा: चैत्र नवरात्रि में पीताम्बरा सिद्ध पीठ पर उमडेगा जन सैलाब

1 फोटो पीताम्बरा पीठ मा बगलामुखी देवी

आगरमालवा, 29 मार्च (Udaipur Kiran) । चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व पर

देवी आराधना के लिये आगरमालवा जिले की धार्मिक पर्यटन नगरी नलखेड़ा स्थित विश्वप्रसिद्ध

पीताम्बरा सिद्धपीठ माँ बगलामुखी मंदिर पर इस दौरान प्रदेश के साथ ही देश के विभिन्न

प्रांतों से आने वाले श्रद्धालु भक्तों का सैलाब उमड़ेगा। नवरात्री के इन नौ दिनों में

कई मंत्री, सासंद, विघायक, वीवीआईपी, आला अधिकारी, कर्मचारी के साथ ही विभिन्न स्थानों

से इस पीठ पर बड़ी संख्या में पहुंचने वाले दर्शनार्थी भक्तों के लिये जिला प्रशासन

द्वारा माकूल इंतजाम किये गये है।

शास्त्रों में इस पीताम्बरा सिद्धपीठ के बारे में ऐसा उल्लेख

है कि लक्ष्मणा (लखुन्दर) नदी के किनारे स्थित इस माँ बगलामुखी के सिद्धपीठ पर स्थित

प्रतिमा महाभारत कालिन है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर धर्मराज

युधिष्ठिर ने इस सिद्धपीठ मंदिर में बैठकर माँबगलामुखी की साधना कर महाभारत युद्ध में

कौरवों पर विजय प्राप्त की थी और पुनः अपना राज्य कायम किया था। यही कारण है कि नवरात्रि

पर्व के दौरान यहां देश के अनेक हिस्सों से राजनेता, मंत्री, सांसद, विधायक, अभिनेता,

आला अधिकारी सहित नामी हस्तियां भी माता के दरबार में माथा टेककर अपनी मनोकामना पूरी

करने के लिये मंदिर में अनुष्ठान करने आएगें। माँ बगलामुखी की साधना करने से कितना

ही घोर शत्रु हो वह अपनी ही विनाश बुद्धि से स्वयं पराजित हो जाते है तथा साधक का जीवन

बिना कष्टों वाला बन जाता है। शास्त्रोक्त दस महाविद्याओं में से बगलामुखी सबसे ज्यादा

प्रयोग में ली जाने वाली महाविद्या है क्योंकि इसी महाविद्या से शत्रुओं का दमन होता

है। माँ बगलामुखी की साधना से राजनैतिक लाभ, जेल से मुक्ति, वशीकरण, शत्रुनाश, तंत्र

सिद्धि, घर में सुख-समृद्धि, मुकदमा जैसे असाध्य कष्टों में लाभ मिलता है।

दस महाविद्याओं में से आठवीं विद्या के रूप में विराजमान माँबगलामुखी

इस सिद्धपीठ में त्रिशक्ति के रूप में याने मध्य में माँबगलामुखी, दाये माँलक्ष्मी

और बाये माँ सरस्वती के रूप में विराजमान है। माँ बगलामुखी को पीला रंग अत्यन्त प्रिय

होने से यहां पूजन सामग्री में सभी वस्तुएं पीली रंग की चढ़ाई जाती है जैस पीली चुनरी,

पीले फूल व पीले नीबू की माला, हल्दी गठान की माला आदि पूजन सामग्री चढ़ाई जाती है तथा

हवन में भी सरसों का प्रयोग किया जाता है।

मंदिर परिसर में ही अनेक श्रृद्धालु भक्तजन अनुष्ठान, हवन, पूजन आदि करके माँ के

प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते है। वही मंदिर के पीछे की दीवार पर अनेक लोग उल्टा

स्वस्तिक बनाकर माँ से अपनी मनोकामना की अर्जी लगाते है। मंदिर के पीछे कल-कल करके

बहती लक्ष्मणा नदी की अपनी अनुपम छटा लोगों को बसबस ही अपनी और मोह लेती है।

(Udaipur Kiran) / रितेश शर्मा

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