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बांदा, 8 नवंबर (Udaipur Kiran) । यूपी के बांदा के कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में चल रही धान उन्नयन परियोजना का अवलोकन करने के लिए फिलीपींस के अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के दो वैज्ञानिक, डॉ. सी. वेंकटेश्वरलू (धान प्रजनक) और डॉ. आशीष नल्ल (धान-बीज वैज्ञानिक), पहुंचे। इस परियोजना का उद्देश्य बुंदेलखंड क्षेत्र में धान की खेती की लागत को कम करना, फसल की गुणवत्ता को सुधारना और कम अवधि में खरपतवार प्रतिरोधी धान की प्रजातियों का विकास करना है।
जर्मप्लाज्म का मूल्यांकन
परियोजना के तहत बुंदेलखंड की परिस्थितियों के अनुरूप 280 धान जर्मप्लाज्म (धान की विभिन्न प्रजातियां) का मूल्यांकन किया जा रहा है। इनमें सूखा प्रतिरोधक, रोग प्रतिरोधक, पोषण गुणवत्ता और अन्य विशेष गुणों वाली प्रजातियां शामिल हैं। उद्देश्य यह है कि इन विशेषताओं के माध्यम से धान की खेती को बारिश पर आधारित क्षेत्रों में सफल बनाया जा सके। इसके अलावा, शोध में यह भी देखा जा रहा है कि कौन सी धान प्रजाति कम लागत, सीधी बुआई विधि से कम समय में अधिक उपज दे सकती है।
खाली भूमि का अधिकतम उपयोग
इस बारे में निदेशक शोध डॉक्टर एस सी मिश्रा ने बताया कि परियोजना का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य खरीफ सीजन में खाली पड़ी भूमि पर धान की खेती को बढ़ावा देना है, जहां अन्य फसलें बारिश के कारण क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या खाली भूमि रह जाती है। सीधी बुआई विधि द्वारा धान की सफल खेती से किसानों की आय में वृद्धि होगी और पशुओं के लिए सूखा चारा उपलब्ध हो सकेगा, जिससे अन्ना प्रथा की समस्या को कम करने में भी मदद मिलेगी। इस बारे में भी फिलिपींस से आए वैज्ञानिकों को जानकारी दी गई।
क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श और रणनीति
प्रक्षेत्र भ्रमण के बाद वैज्ञानिकों और स्थानीय अधिकारियों के बीच धान की खेती में आ रही समस्याओं पर गहन विचार-विमर्श हुआ। इस दौरान निदेशक शोध डॉ. ए.सी. मिश्रा, निदेशक बीज एवं परियोजना प्रभारी डॉ. एस.के. सिंह, अधिष्ठाता कृषि डॉ. जी.एस. पंवार, पादप प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मुकुल कुमार, मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जगन्नाथ पाठक, डॉ. धीरेन्द्र सिंह और डॉ. आशुतोष राय उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / अनिल सिंह
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