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पंचायती राज संशोधन को हाईकोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका मेरिट बेस में हुई खारिज

बिलासपुर हाइकोर्ट

बिलासपुर 28 जनवरी (Udaipur Kiran) । छत्तीसगढ़ पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर बिलासपुर हाइकोर्ट की डिवीजन बेंच में लंबी कानूनी बहस हुई। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविन्द्र कुमार अग्रवाल की बैंच में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शक्तिराज सिन्हा ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य शासन ने ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने वाली छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को विलोपित कर दिए जाने और सरकार के बीते वर्ष 3 दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश -2024 से लेकर अपना पक्ष रखा।

वहीं राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने शासन का पक्ष रखते हुए इस मामले में नए अध्यादेश 23 जनवरी 2025 को जारी कर दिए जाने की बात कही। और इसके साथ सरकार के द्वारा बजट सत्र में इसे विधानसभा पटल में रखने की जानकारी दी। वहीं कोर्ट में संवैधानिक रूप से इस अध्यादेश को पारित होने को लेकर अनुच्छेद 213(2) के तहत राज्यपाल से सहमति के पारित होने और वहीं राज्य की विधान सभा के समक्ष पुनः समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले निरनुमोदन का प्रस्ताव पारित कर दिए जाने को लेकर पक्ष रखा।

इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शक्ति राज सिन्हा ने अपनी याचिका में कही बातों को दोहरा और आरक्षण संबंधी संशोधन के नियमों को लेकर पूर्व अध्यादेश पर अपनी बात रखी। जिसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के अध्यादेश को लेकर के दिए गए निर्णय का संदर्भ दिया। जिस पर महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने अपनी दलील रखी। वहीं कोर्ट ने इस मामले में उन निर्णयों के संदर्भ से संबंध नहीं देखते हुए विधि संगत निर्णय लिया।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों को गंभीरता से सुना और अपने आदेश में शामिल करते हुए विधि संगत निर्णय लेते हुए मेरिट बेस पर याचिका को खारिज कर दिया ।

हाईकोर्ट में जिला पंचायत सूरजपुर के उपाध्यक्ष नरेश रजवाड़े ने याचिका लगाई थी। जिसमें याचिकाकर्ता के मुताबिक, पांचवी अनुसूची में शामिल जिलों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करने वाली छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(ड.) की उपधारा (03) को लोप करने के लिए पिछले साल 3 दिसंबर को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश -2024 को लाया। भारत के संविधान की अनुच्छेद 213 में निहित प्रावधान के तहत कोई भी अध्यादेश अधिकतम छह माह की अवधि तक ही क्रियाशील होता है अथवा विधानसभा के आगामी सत्र में अनिवार्य रूप से प्रस्ताव पारित कर अधिनियम का रूप दिलाना होता है, जिसमें छत्तीसगढ़ शासन ने गंभीर चूक की है। अध्यादेश जारी होने के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा के आहूत सत्र दिनांक 16 जनवरी 2024 से 20 जनवरी 2024 तक में इस महत्वपूर्ण अध्यादेश को पारित नहीं कराते हुए मात्र विधान सभा के पटल पर रखा गया है। जिसके कारण अध्यादेश वर्तमान में विधिशून्य/औचित्यविहीन बताया। ऐसी स्थिति में वर्तमान में उक्त संशोधन के आधार छत्तीसगढ़ पंचायत निर्वाचन नियम (5) में दिनांक 24 दिसंबर 2024 को किया गया संशोधन पूर्णतः अवैधानिक है। लेकिन इस पूरे मामले में 20 जनवरी को सुनवाई हुई और सरकार को कैबिनेट में पारित करने के संवैधानिक अधिकार के तहत 6 सप्ताह का समय निर्धारित होने पर 27 जनवरी 2025 को सुनवाई रखी। वही 27 जनवरी को हुई सुनवाई में शासन के अधिवक्ता ने बताया कि इसको लेकर नया अध्यादेश जारी किया गया है। इसलिए अब सरकार के पास अगली कैबिनेट में उसे रखने का समय है। जिसे सरकार अगले बजट सत्र में विधानसभा पटल में रख सकती है। वहीं बैंच ने दोनों पक्षों की लंबी बहस के बाद अपना फैसला सुनाया। वहीं याचिका को मेरिट बेस पर खारिज कर दिया है।

(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi

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