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दहेज हत्या में सास ससुर सहित पांच को तलब करने का आदेश रद्द

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

-सत्र न्यायालय को नियमानुसार नए सिरे से अर्जी निस्तारण का निर्देश

प्रयागराज, 20 जनवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गवाहों के बयान व साक्ष्यों पर विचार किए बगैर केवल सीआरपीसी की धारा 319 की अर्जी के तथ्यों पर दहेज हत्या व षड्यंत्र के आरोप में लम्बित आपराधिक मामले में सास, ससुर, जेठ, ननद व डॉक्टर को सम्मन करने के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है।

हाईकोर्ट ने प्रकरण ट्रायल कोर्ट मुरादाबाद को वापस कर सीआरपीसी की धारा 319 की अर्जी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में नए सिरे से निस्तारित करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने जेरा उर्फ चमिया व चार अन्य की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर उनके अधिवक्ता केशरी नाथ त्रिपाठी और सरकारी वकील को सुनने के बाद दिया है।

अधिवक्ता केशरी नाथ त्रिपाठी का कहना था कि मुरादाबाद के भोजपुर थाने में षड्यंत्र, दहेज हत्या सहित अन्य आरोपों में अदालत के निर्देश पर एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने विवेचना के दौरान दर्जनों गवाहों के बयान दर्ज किए। वर्तमान में पति के खिलाफ ट्रायल चल रहा है।

काजीपुरा गांव के मौसम अली ने आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता की बेटी का निकाह रफत अली से हुआ। जिसमें सात लाख नकद दिए गए लेकिन ससुराल वाले दहेज से संतुष्ट नहीं हुए। वे शिकायतकर्ता की बेटी को प्रताड़ित करने लगे। समझौते के लिए बिरादरी की पंचायत भी बुलाई गई। इस दौरान दो बेटियां पैदा हुई। तीसरा गर्भ भी आया लेकिन डॉक्टर की मिलीभगत से ग्लूकोज में जहरीला इंजेक्शन दिया गया, जिससे लड़की का पांच माह का गर्भ गिर गया। उसे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कर परिवार को सूचना दी गई। जब शिकायत कर्ता परिवार के साथ अस्पताल पहुंचा तो ससुराल वाले भाग खड़े हुए।

लड़की ने नाजुक हालत में पूरा वाकया बताया। बाद में उसकी मौत हो गई। पुलिस की चार्जशीट पर पति के खिलाफ ट्रायल चल रहा है।

शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 319 में सह अभियुक्तों को सम्मन कर ट्रायल में शामिल करने की अर्जी दी। अदालत ने याचियों को सम्मन जारी किया है। अधिवक्ता केशरी नाथ त्रिपाठी का कहना था कि मजिस्ट्रेट ने बयानों व साक्ष्यों पर विचार नहीं किया और केवल अर्जी के तथ्यों पर आदेश किया है। ट्रायल कोर्ट ने सम्मन जारी करते समय अपनी संतुष्टि दर्ज नहीं की। इसलिए आदेश विधि विरुद्ध है और रद्द किए जाने योग्य है। सुनवाई के बाद कोर्ट सम्मन आदेश रद्द करते हुए अर्जी को नियमानुसार नए सिरे से निस्तारित करने का निर्देश दिया।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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