
झाबुआ/नागदा, 20 मई (हिंस) मप्र के आदिवासी अंचल झाबुआ जिले में स्वतंत्रता संग्राम में देशभक्तों, सेनानियों के योगदान पर प्रकाशित एक पुस्तक की आरटीआई में जानकारी उपलब्ध कराने में लापरवाहीे पर मप्र राज्य सूचना आयोग ने दो ज्वाइंट कलेक्टर के विरूद्ध संयुक्त रूप से 5 हजार की क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करने का आदेश दिया है। आयोग ने यह निर्णय झाबुआ के संयुक्त कलेक्टर अक्षयसिंह मरकाम और नीमच की संयुक्त कलेक्टर श्रीमती प्रीति संघवी के खिलाफ पारित किया । यह आदेश नागदा जिला उज्जैन के आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया के सूचना अधिकार में आयोग भोपाल में प्रस्तुत अपील के निर्णय में हुआ। इस पुस्तक में शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्म स्थली भाबरा (झाबुआ) समेत स्वाधीनता आंदोलन में जिले भर के देशभक्तों के योगदान के संकलन पर प्रकाशित पुस्तक से जुड़ा मामला है। यह पुस्तक कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से कबीर निधि से प्रकाशित हुई थी। जिसकी प्रति सूचना अधिकार में मागी गई थी।
क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करने का आदेश दिया है
कलेक्टर झाबुआ को निर्देश दिया है। आयोग कमिश्नर डॉ. उमाशंकर पचौरी की खंडपीठ ने निर्णय में उक्त दोनों अधिकारियों को नसीहत भी दी हैकि अब भविष्य में सूचना अधिकार के आवेदनों का निराकरण गंभीरतापूर्वक विधि सम्मत तरीके से करें।
यह है पूरा मामला
आयोग़ निर्णय अभिलेख के मुताबिक आजादी की 50 वी वर्षगांठ पर मप्र शासन की योजना के तहत स्वाधीनता संग्राम में झाबुआ जिले का योगदान विषय पर एक पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1999 में हुआ था। जिसका लोकार्पण तत्कालीन झाबुआ कलेक्टर वसीम अख्तर के कार्यकाल में 6 अगस्त 2000 को तत्कालीन तत्कालीन प्रभारी मंत्री घनश्याम पाटीदार के हाथों हुआ। गौरतलब हैकि इस पुस्तक में चंद्रशेखर आजाद की झाबुआ जिले में जन्म स्थली भाबरा से संबधित संकलन भी प्रकाशित हुआ।
पुस्तक में राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के संदेश
यह पुस्तक इतनी महत्वपूर्ण हैकि देश के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर नारायण, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन राज्यपाल डाॅॅ भाई महावीर, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के संदेश भी प्रकाशित है। संविधान सभा के पूर्व सदस्य कुसुमकांत जैन इस पुस्तक प्रकाशन समिति के अध्यक्ष थे। श्री सनोलिया ने एक सूचना अधिकार में कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से अप्रैल 2022 में इस प्रकाशित पुस्तक की प्रति के साथ पुस्तक के मुद्रण खर्च, लेखकों के पारिश्रमिक, संपादकीय मंडल की बैठक आदि का विवरण मांगा था।
पुस्तक प्रकाशित नहीं होने का दावा
कलेक्टर कार्यालय के वर्तमान और पूर्व दोनों अधिकारियों ने पहले आयोग को अवगत कराया कि इस प्रकार की किसी भी पुस्तक का प्रकाशन नहीं हुआ। जिसके बाद यह मामला आयोग के समक्ष सुनवाई में उठाया कि उन्हें वास्तविक की जगह अन्य गुमराहपूर्ण पुस्तक प्रदान की गई। अब झूठा जवाब हैकि इस प्रकार की कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई। आखिरकार पुस्तक मिली और उपलब्ध करा दी गई। आयोग ने इस बात को माना कि दोनों अधिकारियों ने आरटीआइ आवेदन को गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए बतौर क्षतिपूर्ति राशि दोनों अधिकारियों से 5 हजार निर्धारित कर अपीलार्थी को प्रदान करने का आदेश पारित किया।
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(Udaipur Kiran) / कैलाश सनोलिया
